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श्रीजीवाभिगमसूत्र आहरन्ति नो अस्पृष्टानि आहरन्तीति । आत्मप्रदेशैः संस्पर्शनम् आत्मप्रदेशावगाढक्षेत्रावहिरपि संभवती यतः पुन. प्रश्नयन्नाह-'ताई भंते ? ओगाढाई आहारेंति अणोगाढाई आहारेति' यानि भदन्त : स्पृष्टानि आहरन्ति तानि किम् अवगाढानि-आत्मप्रदेशैः सहकक्षेत्रावस्थायीनि अथवा अनवगाढानि आत्मप्रदेशक्षेत्राद बहिरवस्थितानि आहरन्तीति प्रश्न , भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम : ओगाढाई आहारेंति नो अणोगाढाई आहारेति' अवगा ढानि आहरन्ति ते सूक्ष्मपृथिवीकायिका. नो-न तु अनवगाढानि आत्मप्रदेशावगाहक्षेत्राद , चहिरवस्थितानि आहरन्तीति । 'ताई भंते ! कि अणंतरोगाढाई आहारेंति परंपरोगाढाई आहारेंति' यानि भदन्त ? द्रव्याणि अवगाढानि आहरन्ति, तानि किम अनन्तरावगाढानि आहगुणित कर्कशादि स्पर्ण वाले या यावत् अनन्तगुणित कर्कशादि स्पर्श वाले द्रव्यो का आहार करते हैं वे एक गुणित कर्कशादिस्पर्शवाले द्रव्य या यावत् अनन्त गुणित कर्कशादि स्पर्शवाले द्रव्य उनके आत्मप्रदेशों से स्पृष्ट होते है अस्पृष्ट नहीं होते हैं "ताई भंते ओगाढाई आहारेंति अणोगाढाई आहरति' हे भदन्त ! जो आत्मप्रदेशों के साथ संस्पृष्ट होते है उनका रहना आत्मप्रदेशावगाढ क्षेत्र से बाहर भी संभवित हो सकता है अतः इस सूत्र द्वारा गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि हे भदन्त । जो कर्कशादिस्पर्शवाले द्रव्य स्पृष्ट होते है और उनका वे आहार करते हैं तो क्या वे द्रव्य आत्मप्रदेशों के साथ एक क्षेत्रावस्थायी रूप से अवगाढ होते हैं ? अथवा-आत्मप्रदेशावगाही क्षेत्र से बाहर अवस्थित होते है : उत्तर में प्रभु कहते है ‘गोयमा ओगाढाई आहारेंति णो अणोगाढाइ आहारैति" हे गौतम ! वे सूक्ष्मपृथिवीकायिकजीव पूर्वोक्त विशेषणवाले अवगाढ द्रव्यों का ही आहार करते हैं अनवगाढ द्रव्यों का आहार नहीं करते है । "ताई कि
तेने उत्तर भापता महावीर प्रमु ४ छ ‘गोयमा पुट्ठाई आहारेंनि, मो अपुट्ठाई आहारति" हे गौतम । ते सूक्ष्म पृथ्वीजयि ७२ ४ शुशित शाह २५i અથવા બેથી લઈને અનંત ગુણિત કર્કશાદિ સ્પર્શવાળાં દ્રવ્યને આહાર કરે છે, તે એક ગુણિતથી લઈને અનંત ગુણિત પર્યતના કર્કશાદિ સ્પર્શવાળાં દ્રવ્યો તેમના અને ત્મપ્રદેશની સાથે પૃટ હોય છે, અસ્પષ્ટ હોતાં નથી જે દ્રવ્યો આત્મપ્રદેશોની સાથે સંસ્કૃષ્ટ હોય છે, તેમનું રહેવાનું સ્થાન આત્મપ્રદેશાવગાઢ શ્રેત્રની બહાર પણ સંભવી શકે છે. તેથી હવે गौतम स्वामी महावीर प्रभुने सेवा प्रश्न पूछे छे -"ताई भंते ! योगाढाई आहारेति'' यणोगाढाई मादरेति' गवन् ! शाहि-५ वाजiदव्यो स्पृ हाय छे तमंना तमा જે આહાર કરે છે, તે શું તે દ્રવ્યો આત્મપ્રદેશોની સાથે એક ક્ષેત્રાવસ્થાયી રૂપે અવગાઢ આત્મપ્રદેશાવગાહી દરની બહાર અવસ્થિત (રહેલાં) હોય છે ?
तन। उत्तर आता महावीर प्रभु छे -"गोयमा ! ओगाढाइ आहारेंति, णो अणोगाढा थाहारैति' हे गोलभ ! ते सक्ष्म पृथ्वीनायि ४ पूर्वोकृत विशेष वाणां અવગાઢ દ્રવ્યોને જ આહાર કરે છે, અનવગાઢ દ્રવ્યોને આહાર કરતા નથી. ગૌતમ સ્વ