________________
२०
ज्ञानानन्द श्रावकाचार।
शास्त्र अंतर मुहूर्तमै पड़ जाइ है। अरु मन बल रिद्धि कर द्वादशांग शास्त्रका अंतर मुहूर्तमें चिंतवन कर लें हैं । अरु आकाश विष गमन करे हैं और जलविर्षे ऊपर गमन करें हैं पनजलका जीवको विरोधै नाहीं हैं। अरु धरती वि डूबि जाई हैं पण पृथ्वी कायकी जीवको विरोधैं नाहीं हैं । और कही विषावह राया है, अरु शुभ दृष्टि करि देखै तौ अमृत होई जाय है पन ऐसै मुन महाराज करै नांही। और कहीं अमृत वह राया है। अरु मुनमहाराज करै द्रष्टि कर देखे तौ विष होय जाइ पन ऐसे भी करै नांही ।
और दया शांति द्रष्टि करि देखै तौ केतईक योजन पर्यंतकाका जीव सुखी होइ जाइ । अरु दुर्भिक्ष आदि ईत भीत दुख मिटि जाइ। सो ऐसी शुभ रिद्धि दयाल बुद्धि करि फुरे है तौ दोप नाहीं । अरु ऋरि द्रष्टि करि देखै तौ केताइक जोजनके जीव भस्म होइ जाइ । पन ऐसे करें नाहीं, अरु जाका शरीरका गंधोदक व नवों द्वारोंको मल अरु चरनातरली धूल अरु शरीरका सूपर्सा पवन शरीरकू , लगै तब लगता को आदि सर्व प्रकारके रोग नाशकुं प्राप्ति होइ।
और मुनि महाराजजी गृहस्थ के आहार कीया है तीके भोजन विष नाना प्रकारकी अटूट रसोई होय जाई तिहि दिन सर्व चक्रवर्तिका कटक जीमै तौ भी टूटे नाहीं अरु चार हाथकी रसोईके क्षेत्रमै ऐसी अब गाहन शक्ति होयजाई सो चक्रवर्तिका कटक. सर्व समाइ जाई । अरु बैठ कर जुदा जुदा भोजन करै तब भी सकड़ाई होइ नाहीं । अरु जेठे मुन अहार करें तीके दुवारै पंचा चार्य होई। रत्नवृष्टि, पहुपवृष्टि, गंधोकवृष्टि अरु जय जयकार शब्द, अरु देव दुंदुभि ये पंचाचार्य जाननै । अरु सम्य