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ज्ञानानन्द श्रावकाचार । . रूपनै धावौला तौ नियमकरि मोक्ष सुखनै पावौला । तीसुं भगवाननी मैं थानै ऐसा उपदेशकरि सर्वज्ञ-वीतराग जान्यां अरजे सर्वज्ञ वीतराग हैं तेही सर्व प्रकार जगत विष पूज्य हैं ऐसा सर्वज्ञ वीतराग जान भगवानजी म्है थानै नमस्कार करूं छु। सर्वज्ञ विना तौ सर्व पदार्थोका स्वरूप जान्या जाई नाहीं अरु वीतराग विना राग द्वेषकौं वसकरि यथार्थ उपदेश दिया जाई नाहीं। कैतौ अपनी सर्व प्रकार निंदाका ही उपदेश है। कै अपनी सर्व प्रकार बड़ाई महंत ताका उपदेश है सो ए लक्षन भलीभांति कुदेवादिक विषै संभवै है । तीसूं भगवानजी म्है भी वीतराग छा। तीसू म्हाका स्वरूपकी बड़ाई करा छां । सो म्हानै दोष नाहीं। एक राग द्वेष ही का दोष है। सो म्हाकै राग द्वेष आपके प्रसाद करि विलै गया है। बहुरि कैसे हैं शुद्धोपयोगी महा मुनि जाकै राग अरु द्वेष समान है । अरु जाके सत्कार पुरस्कार समान है। अरु जाके रतन अरु कौड़ी समान है। अरु जाकै सुख दुख समान है। अरु जार्के उपसर्ग अनउपसर्गसमान है । जाकै मित्र शत्रु समान है। कैसै समान है सो कहिए है पूर्व तौ तीर्थकर चक्रवर्ति वा बलिभद्र वा कामदेव वा विद्याधर वा बड़ा मंडलेश्वर मुकुट बंधराजा इत्यादि बड़ा महंत पुरुष मोक्ष लक्ष्मीके अर्थ संसार देह भोगसू विरक्त होई राज्य लक्ष्मीनै वोदा तृणकी नाई छोड़ि संसार बंधननैं हस्तीकी नाईं तोड़ वनके विर्षे जाइ दीक्षा धेरै हैं। निरग्रन्थ दिगम्बर मुद्रा आदरै हैं । पार्छ परनामोंका महात्म करि नाना प्रकारकी रिद्धि फुरे है कसी है रिद्धि काय बलि रिद्धिका बल करिं चाहे जेता छोटा बड़ा शरीर बना ले है। वा सारखी सामर्थता होय है अरु वचन बलि रिद्धि करि द्वादशांग