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विनयाऽधिकारः।
१ बोल पृष्ठ २७३ से २७४ तक । सावध विनय नों निर्णय ( ज्ञाता अ०५)
२ बोल पृष्ठ २७४ से २७६ तक। पाण्डु पाण्डव नारद नों विनय कियो (ज्ञाता अ. १६)
३ बोल पृष्ठ २७६ से २७७ तक । अम्बडनो चेलां विनय कियो ( उवाई प्र० १३)
४ बोल पृष्ठ २७८ से २८० तक। धर्माचार्य साधु नें इज कह्यो ( राय प०),
५ बोल पृष्ठ २८० से २८१ तक। सूर्याभ प्रतिमा आगे नमोत्थुणं गुण्यो (जम्बू द्वी० )
६ बोल पृष्ठ २८२ से २८४ तक। तीर्थङ्कर जन्म्यां इन्द्र घणो विनय करे (ज० द्वी)
७ बोल पृष्ठ २८४ से २८५ तक। इन्द्र तीर्थङ्कर जन्म्यां विचार (ज० द्वी)
८ बोल पृष्ठ २८५ से २८६ तक । इन्द्र तीर्थङ्कर नी माता ने नमस्कार करै ( ज० द्वी० )
बोल पृष्ठ २८६ से २८७ तक। नवकार ना ५ पद ( चन्द्र० गा०२)
१० बोल पष्ठ २८७ से २८८ तक। सर्वानुभूत्रि-सुनक्षत्र मुनि गोशाला ने कह्यो (भग० श० १५)
११ बोल पृष्ठ २८८ से २८६ तक। पाहण साधु नें इज कह्यो (सूय० श्रु० १ ० १६ )