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३ बोल
पृष्ठ २५३ से २५४ तक ।
ऋषभदेव निर्वाण पहुन्ता इन्द्र दाढ़ा लीधी देवता हाड़ लीघा (जम्बू० प०) से २५६ तक ।
४ बोल पृष्ठ २५४ aai घोल तीर्थङ्कर गोत्र ( ज्ञाता अ० ८ )
पृष्ठ २५६ से २५७ तक ।
५. बोल सावध सातां दीघां साता कहै तिनें भगवान् निषेध्यो (सू० अ० ३ उ० ४) ६ बोल पृष्ठ २५७ से २५६ तक ।
कुल. गण, सङ्घ साधर्मो. साधु नें इज कह्या ( ठा० ठा० ५० १) ७ बोल पृष्ठ २५६ से २६० तक ।
दश व्यावच साधुनीज कही ( ठा० ठा० १०)
बोल
१० व्यावच (उवाई)
τ
पृष्ठ २६०
६ बोल पृष्ठ : २६२ से २६६ तक |
भिक्षु मुनिराज कृत वार्त्तिक
११
१० बोल
पृष्ठ २६७ से २६६ तक ।
साधुना अर्श वैद्य द्यां स्यूं हुवे ( भग० श० १६ उ० ३ )
बोल
पृष्ठ २६६ से २७० तक ।
साधुने अर्श छेशव्यां तथा अनुमोद्यां प्रायश्चित्त कह्यो । ( निशाँ० उ०१५ बो० ३१)
१२
से २६२ तक ।
बोल
पृष्ठ २७० से २७२ तक ।
सारा व्रण छेदे तेहनें अनुमोदे नहीं ( आचा० अ० १३ श्रु० २ )
इति श्री जयाचार्य कृते भ्रमविध्वंसने वैयावृत्ति अधिकारानुक्रमणिका समाप्ता ॥
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