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२ बोल पृष्ठ २२५ से २२७ तक । सर्वानुभूति गोशाला ने कह्यो ( भग० श० १५ )
३ बोल पृष्ठ २२७ से २२६ तक । भगवान् गोशाला ने कह्यो ( भग० श० १५ )
४ बोल पृष्ठ २२६ से २३० तक । गोशाला ने कुशिष्य कह्यो ( भग० श० १५ )
इति श्री जयाचार्य कृते भ्रमविध्वंसने गोशाला ऽधिकाराऽनुक्रमणिका समाप्ता ।
गुण वर्णनाऽधिकारः
१ बोल पृष्ठ २३१ से २३१ तक ।
गणधरां भगवान् गुण वर्णन कीधा-अवगुण वर्णन नहीं ( आ० श्रु० १ म० ६ ० ४ गा० ८ )
२ बोल पृष्ठ २३१ से २३३ तक ।
साधां गुण (वाई)
३ बोल पृष्ठ २३३ से २३३ तक ।
कोणक राजाना गुण ( उवाई )
४ बोल पृष्ठ २३४ से २३४ तक ।
श्रावकांना गुण ( वाई प्र० २० )
५ बोल पृष्ठ २३५ से २३६ तक ।
गोतम रा गुण ( भग० श० १ उ०१ )
इति श्री जयाचार्य कृते भ्रमविध्वंसने गुणवर्णनाऽधिकारानुक्रमणिका समाप्ता ।