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८ बोल पृष्ठ १९३ से १९४ तक । विस्मय उपजायां चौमासिक प्रायश्चित्त (नि० उ० ११ वो० १७२ ) इति जयाचार्य कृते भ्रमविध्वंसने लब्ध्यधिकारानुक्रमणिका समाप्ता ।
प्रायश्चित्ताऽधिकार।
१ बोल पृष्ठ १६५ से १६६ तक । सीहो अनगार मोटे मोटे शब्दे रोयो (भ० श० ५१)
२ बोल पृष्ठ १६६ से १६७ तक । - महमुत्ते साधु पाणी में पानी तराई (भ० श० ५ उ०४)
३ बोल पृष्ठ १६७ से १६८ तक । रहनेमी राजमती ने विषय रूप पचन वोल्यो ( उत्त० अ० २२ गा० ३८
४ बोल पृष्ठ १९८ से १६६ तक । धर्मघोष ना साधां नागश्री में निन्दी ( ज्ञाता अ० १६ )
५ बोल पृष्ठ १६६ से २०२ तक । सेलक ऋषि ढोलो पड्यो ( ज्ञाता अ०५)
६ बोल पृष्ठ २०२ से २०४ तक । सुमङ्गल अनगार मनुष्य मारसी ( भ० श० १५)
७ बोल पृष्ठ २०४ से २०५ तक। "भालोइय पडिकन्ते” पाठ नो न्याय ( भ० श० २ उ०१)
८ बोल पृष्ठ २०५ से २०६ तक। तिसक अनगार संथारो कियो तेहनें “आलोइय” पाठ कह्यो (भ० श०३ उ०१)