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| भाग १=
मैंने कहा कि पांच प्राणी के भरण-पोषण की अस्त-व्यस्तता से समुचित अध्ययन नहीं होने के कारण मैं असफल रहा। कुछ चिन्तित हो ठुड्डी पर हाथ रखकर अपने कहा - " आपके ऊपर परिवार - पोषण का भी भार है ? साधारणतया कितने में आप अपनी गुजर कर लेते हैं ?" मैंने कहा "दस रुपये में ।" वस्तुतः मेरे जैसे साधारण व्यक्ति के लिए जब कि पक्की तौल से १४ सेर का चावल, १३ सेर का आटा, १३ की दाल और १ रु० में पौने दो सेर का घी मिलता था - प्रति व्यक्ति २ रु० मासिक भोजनाच्छादन के लिए पर्याप्त थे । इन दिनों तो प्रतिप्राणी के लिये ३५ रु० पड़ जाते हैं; पर भोजनाच्छादन पूर्वानुपातः निकृष्टतम । आपने कहा कि १० रु० के लिए कितने घंटे लग जाते हैं। मैंनेकहा कि ५-६ घंटे । आपने कहा कि पण्डितजी से मैंने कहा था कि १२ बजे से ४ बजे तक हिन्दी पढ़ाने के लिए एक छात्र दें, जिन्हें १० रु० वेतन में मिलेंगे । पर मैं अब सोच रहा हूं कि आप १२ से २ ही बजे तक पढ़ायें और १२ रु० मासिक आपको कोठी से मिलेगा । किन्तु परिश्रम करके इस साल परीक्षा पास कर लें । श्रन्यथा मैं समझँगा कि आप विद्यार्थी नहीं प्रत्युत केवल अर्थार्थी हैं। परीक्षा पास कर लेने पर आपकी वेतनवृद्धि की भी चेष्टा की जायगी। आप आज ही से पढ़ाना प्रारंभ कर दें। मुझे तो मांगी मुराद मिली - मनमें कहा कि मैं आज अपने सौभाग्यसुरतरु के आश्रय में आ गया । अस्तु चि० बड़े बब्बू (बा० निर्मलकुमारजी) बुलाये गये । आप भीतर बँगले से निकल आये । अवस्था लगभग आठ साल की होगी । दुबले-पतले लालिमा लिये हुए तेजस्विता की प्रतिमूर्ति चित्र निर्मलकुमारजी को देखकर
बड़ी प्रसन्नता हुई । यही पं० जी आज से आपको पढ़ायेंगे - किताब कापी लेते आइये । बाबू साहब के निकट ही एक कालीन बिछी चौकी पर मैं बैठ गया । चि० बड़े बब्बू हिन्दी की एक पुस्तक और दो एक कापियाँ लिये मुझ अदृष्टपूर्व अध्यापक को एकटक देखने लगे। मैंने पढ़ाना प्रारंभ कर दिया । यों मेरा अध्यापन अविच्छिन्न रूप से चलने लगा प्रतिदिन आपके निकट मुझे पढ़ाना पड़ता था । भले ही विशेष पढ़े लिखें न हों, पर ब्राह्मण प्रकृत्या अपने को वर्णज्येष्ठ तथा ज्ञानज्येष्ठ
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भास्कर
समझने में उन दिनों भूल नहीं करते थे । अतः मेरी धारणा थी कि बाबू साहब एक बड़े जमींदार हैं । कुछ पढ़े लिखें होंगे । आपको हिन्दी की विशेषज्ञता कहाँ ? यही कारण था कि बिना कुछ सोचे-समझे निर्भीकतापूर्वक पढ़ाता था। एक दिन किसी दोहे का अर्थ उल्टा सीधा पढ़ा रहा था। "आप झट टोक बैठे पं० जी क्या पढ़ा रहे हैं ?" मैंने कहा कि यही दोहा । आपने कहा इसको अन्वय और शब्दार्थ तो कहिये । मैंने जरा संभलकर अन्वय और शब्दार्थ कह दिये। तब इसका अर्थ क्या होगा ?