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किरण ]
सफल हुआ है । राजुल के त्याग और आत्म-सम्मान को कवि महिलाओं में लाने के लिए अनुप्राणित हुए हैं और "नारी तो तन, मन, जीवन दे" नारी न कभी इतनी wist होती जितना नर वन जाता" आदि पद्यों को उन्होंने लिखा है परन्तु भगवान् नेमी के उच्च आदर्श को “जितना ओछा नर बन जाता" कह कर विरुद्ध अर्थ प्रतिपादन किया है। हम कवि और उनकी कलम के प्रति शुभ कामना रखते हैं । रचना सरस, सुन्दर और हृदय स्पर्शी है। इसका अधिक प्रचार होना आवश्यक है।
शवेतकुमार काव्यतीर्थ
साहित्य-समालोचना
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माग्यफल [ भाग्य - प्रकाशक मार्त्तण्ड] ले० पं० नेमिचन्द्रशास्त्री, ज्योतिषाचार्य; प्रकाशकः कान्तकुटीर आरा पृष्ठ संख्याः १३१, मूल्यः सजिल्द एक रुपया दस आना, अजिल्द एक रुपया आठ आना ।
जिसके पास जन्मपत्री नहीं है, वे व्यक्ति भी अपने शुभाशुभ फल को इस पुस्तक के आधार से जान सकते हैं। लेखक ने इसमें भारतीय ज्योतिष के अनेक प्रामाणिक प्रन्थों के आधारपर स्वभाव, चरित्र, विवाह, आय-व्यय, सन्तान, रोग, उन्नति, अवनति, मृत्यु आदि विभिन्न बातों का सुन्दर प्रतिपादन किया है। साधारण जनता भी केवल अपने उत्पत्ति के महीने से ही सारे फलादेशों को अवगत कर सकती है। पुस्तक की शैली राचक, और आकर्षक हैं। वास्तव में लेखक ने इस पुस्तक के द्वारा हिन्दी में ज्योतिष विषय का सृजन करके हिन्दी भाषा भासी जनता का उपकार किया है। देश को आज राष्ट्र भाषा में विभिन्न प्रकार के साहित्य की नितान्त आवश्यकता है। ज्योतिष भारत वर्ष का प्राचीन विज्ञान है, आज इसका प्रचार हिन्दी में अवश्य होना चाहिये। यह पुस्तक नितान्त उपयोगी है, साधारण जनता के काम की है, इससे साक्षर या निरक्षर सभी प्रकार के व्यक्ति अपने भाग्य को बिना ज्योतिषी के अपने आप जान सकते हैं। फल प्रामाणिक ग्रन्थों के आधार से लिखा गया है और आशा है। कि बिल्कुल यथार्थ घटेगा । छपाई सफाई अच्छी है, भाषा साहित्यिक है । पाठकों को इसे मगाकर अपना फल स्वयं ज्ञात करना चाहिये ।
तारकेश्वर त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य