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साहित्य-समालोचना
साहित्य सेवा की ओर भी प्रवृत्त हो रहे हैं; यह जैन ज्ञान-ज्योति के संबर्द्धन और प्रसार का शुभ लक्षण है। हम इस सर्वाङ्गीण सुन्दर प्रकाशन के लिये साहित्य-साधनासमिति की कलाभिरुचि का स्वागत करते हैं । गेटप, छपाई -सफाई आदि निहायत सुन्दर और आकर्षक हैं।
नेमिचन्द्र शास्त्री
जैनधर्म- लेखक: श्री पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री, काशी: प्रकाशकः भा० दि० जैन संघ चौरासी, मथुराः पृष्ठ संख्या: ७+३+३०२ मूल्यः चार रुपये ।
इस उपयोगी और महत्वपूर्ण पुस्तक की भूमिका संयुक्तप्रान्तीय शिक्षा विभाग के मंत्री वा सम्पूर्णानन्दजी ने लिखी हैं । आपने इस पुस्तक के सम्बन्ध में प्रकाश डालते हुए उसे जैनधर्म के ज्ञान के लिये अती उपयोगी बतलाया है। इसमें जैनधर्म के इतिहास दर्शन आचार साहित्य, पन्थ, पर्व, तीर्थ क्षेत्र आदि चिपयों पर समुचित प्रकाश डाला गया है। यह पुस्तक पाँच खण्डों में विभक्त हैप्रथम खण्ड में जनवम का सारगर्भित इतिहासः द्वितीय में जैन दर्शन के अनेकान्त, द्रव्य व्यवस्था. ईश्वर. सृष्टि और कर्म सिद्धान्त की सीमान्सा: तृतीय में श्रावकाचार और मुन्याचार का विस्तृत विवेचनः चतुर्थ में दिगम्बर और श्वेताम्बर साहित्य के दर्शन, व्याकरण, आचार, काव्य ज्योतिष वैयकप्रभृति विभिन्न अंगों का समुल्लेख, एवं पंचम में जैन संघ, संघ भेद, दिगम्बर श्वेताम्बर, स्थानकवासी, तेरहपन्थ, बीसपन्थ, तारणपन्थ, जैन, जैन-सी-क्षेत्र जैनधर्म की इतर धर्मों से तुलना तथा अन्तर इत्यादि वानों का सम्यक प्रतिपादन किया गया है। वास्तव में यह पुस्तक जैनधर्म के सम्बन्ध में सर्वाङ्ग पूर्ण है, इसे किसी भी अजैन विद्वान के हाथों में देने पर गौरव का अनुभव होता है । आजका पाठक जीवनात्मक ढंग से जिस चीज को पाना चाहता है, इसमें पा लेता है । इस पुस्तक के आयोपन्त पढ़ने से लेखक की जैन दर्शन विषयक लोक एवं जैन इतिहास विषयक असाधारण निपुणता का पर्याप्त परिचय मिल जाता है.
आजके लेखक को जिस संयम और नियन्त्रण की आवश्यकता होती है, प्रस्तुत पुस्तक के लिखने में उसका पूर्णतः निर्वाह है। इसीलिये पुस्तक में अनावश्यक विस्तार नहीं है । निस्सन्देह अबतक इस सम्बन्ध में लिखी गई पुस्तकों में यह सर्वोत्तम है । पुस्तक का भाषा प्रवाह ऐसा खर है, जिससे पाठक प्रारम्भ करने पर अन्त किये बिना नहीं छोड़ सकता है, वह बरबस बीच में रोकने की इच्छा करने पर भी लुढ़कता