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[ भाग १८
पिता का बचपन में देहावसान हो गया। मेरी देख-रेख मेरे एक चाचा करते थे । मैने केवल चौथी कक्षा तक पढ़ा है, अधिक पढ़ने की मेरी तीव्र अभिलाषा है; किन्तु साधनों के बिना मैं नहीं पढ़ सका । मेरे साथ मेरी चाची का व्यवहार बहुत दी क्रूर था, अतः दिनरात उनका न्याय, दण्ड मुझे सहन करना पड़ता था । एक दिन चाचा कहीं बाहर गये हुए थे, चाची ने मुझे भोजन भी नहीं दिया तथा खूब काम कराया । मेरा बाल हृदय बगावत कर बैठा और मैं घर से चल पड़ा कहाँ के लिये, इसका मुझे स्वयं परिशान नहीं है। मुझे घर से निकले अभी पन्द्रह दिन हुए हैं। मैं भीख मांग कर अपने जीवन को खोना नहीं चाहता हूँ । मेरी इच्छा है कि कोई मुझे काम दे
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अथवा मेरे अध्ययन का प्रबन्ध कर दें ।
बाबूजी को बालक की बातों का विश्वास हो गया और उससे पूछने लगे कि तुम पढ़ना चाहते हो, कितने रुपये महीने की श्रावश्यकता होगी ? अपना पता नोट करादो, हम तुम्हें सहायता देंगे । आज से भीख माँगना बन्द कर दो, अच्छे लड़के भीख नहीं मांगते हैं; श्रतः किसी स्कूल में नाम लिखाकर पढ़ो। लौटने के बाद बाबूजी बराबर उस विद्यार्थी को सहायता मेजते रहे । शिक्षा के वह बहुत बड़े हिमायती थे ।
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जब हमलोग कार कल की धर्मशाला में पहुँचे तो बाबूजी ने श्री नेमिसागरजी वर्णी से कहामहाराज जी ! क्या हमारा जैन महिला समाज यों ही श्रज्ञानान्धकार में पड़ा रहेगा । हमारी आन्तरिक अभिलाषा है कि छोटी बहू पढ़-लिखकर नारी जागृति का कार्य करे। इनकी पात्रता तो अपने इनके भाषणों से ज्ञात करली ही होगो । हमारा विश्वास है कि यदि इन्हें सुश्रवसर प्रदान किया जायगा तो निश्चय ही यह सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ सकेगीं । श्राप आज इनकी परीक्षा लेकर देखिये, इनका अध्ययन कितना हुआ है।
श्री वर्णीजी विद्या व्यसनी थे ही, श्रतः बाबूजी की बातें सुनकर उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई और कहने लगे- आपकी छोटी बहूने इसी यात्रा में द्रव्य संग्रह और क्षत्र चूड़ामणि समाप्त कर लिये हैं । हिन्दी का परिज्ञान तो इनका बहुत अच्छा है, मैं इनकी परीक्षा क्या लूँ, मेरी मातृ-भाषा कन्नड़ है, अतः श्रापही इनकी परीक्षा लीजिये ।
भास्कर
बाबूजी मुस्कुरा कर कहने लगे- महराज जी ! हमारे यहाँ के सुपरिचित ही हैं; हम कैसे इनकी परीक्षा लें ? श्रतएव विदुषी बहन साक्षात्कार करायेंगे और उन्होंसे इनकी योग्यता का परीक्षण भी । हम व्याख्यान सुनते हैं, बड़ा श्रानन्द श्राता है। बोलने की शैली बहुत पादन बड़ी खूबी के साथ करती हैं। इसी कारण हम चाहते हैं कि सेवा के क्षेत्र में यह बढ़ सकें ।
पर्दे के रिवाज से श्राप मगन बाई जी से इनका
दूर बैठ कर इनका सुन्दर है, विषय का प्रतिइनका विकास हो और