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किरण १]
कविवर सूरचंद्र और उनका साहित्य
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मात्राच्युतक व्यंजन युने, अनुस्वारच्युतकः, वर्णव्युत कः, नंदिनी छंद, साघर, क्रि गद पगूढं, प्रतिमा दक्रि मागूढ, कर्तृ कम पूह, करण सम्प्रदानगूढ, अपादानसंबन्धगड, अधिकरणगूद, पूर्णत्रिपाद्यामंत सदगूढ, पूर्वाद्धं च पूर्वार्द्ध गृह ग्रनंतर पूर्व श्लोक पूर्व के पादि, पूर्व विदोगामे य लुना पूर्वलोक पूर्व त्रियादेचात्यपूर्णत्रियादगुन, पूर्वाश्लोकागृहं, भलो हदयंगूढ, पंच वामर छंदो बद्धे सरलपाठनैव श्लोकद्वये गूढं, पट्य दी, संख्यागूढं तत्रमूलं चतुःषष्टि शे पाश्चत्वारः, संन्यागूढं तत्र नयति मूलं शेषा एकविंशतिश्रन्त:
एवं चित्रभृतैः स्तुतोस्तु सुग्वदः श्रीपंचतीर्थीस्तवः प्रस्तावे जिनवर्द्धमानवृषभो भक्तांगिनां यो मया चारित्रोदयशिप्यवीरकलशानां शैक्षकेणक्षमी
दोणीभृत्क्षमल क्षशिक्षित नतिर्यः सूरचन्द्रर्षिणा ॥६७।। इनि भी पंच तीर्थीस्तवप्रस्तावे श्रीवर्द्धमान स्तवः पंवमः इ त चित्राधिकरः ।
इसके पश्चात् ३ पद्य और हैं जिनमें से पहले में फलवर्द्वि पार्व तब है फिर प्रति अपूर्ण होने से त्रुटिा है । प्रस्तुतः प्रति बीकानेर के बृद्ज्ञान नंडार के श्री महिमा भनि भएडार में है। प्रति तत्कालीन मुन्दर अक्षरों में लि को हुई है जिसको पत्र दिया । है । प्रत्येक पृष्ठ में ११ पंकियों एवं प्रति पंक्ति में ४८ के लगभग अक्षर हैं। हांसिये में कहीं २ मंस्कृत टिप्पा पर्याय लिखे हुए हैं।
३ अजित शांति म्तव-१४ पद्यात्मक अजितनाथ लव के अंतर्गत अनुप्टा छंद के १३ वृत्तों में श्री शातिनाथ स्तव गर्मित है जो अाना रचना को ग़ल और अमितिम वै राष्ठ्य रखती है प्रस्तुत कृति इसके परिशिष्ट में दे दी गयी है ।
४ अष्टार्था श्लोकवृत्ति -३२ व्यं जनाक्षर वाले एक श्लोक के ८ अर्थ वाली प्रस्तुत वृत्ति की रचना स. १६७७ में श्री फलवद्धि पार्श्वनाथ के प्रमाद से की है । इसकी प्रतिलिपि बड़े उपाश्रय में तथा एक प्रतिलिपि हमारे संग्रह में है ।
५ पंचवर्ग परिहार-स्तव सटीक--इसकी प्रति जीरा के भण्डार में प्राप्त है।
राजस्थानी भाषा
१ जिनसिंहसूरि रास-६५ पयवाले प्रस्तुन राम में जिनसिंड्सूरि का प्रारम्भ से प्राचार्य पदोत्सव तक का परिचय है । इसकी प्रति सं० १६६८ में लिखित उपलब्ध होने से रचना (स० १६३० से ६८ के मध्य को) इससे पूर्व की सुनिश्चित है ।
२ श्रृंगार रसमाला-गा० ४१ सं० १६५६ वैशाखसुदि ३ को नागौर में रचित है । ३ वर्ष फलाफल ज्योतिष सझाय गा० ३६