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किरण २]
अरब, अफगानिस्तान और ईरान में जनधर्म
स्वाधीन खोज द्वारा यह घोषित किया था कि दुनियाँ के पुराने मतों पर जैनधर्म की शिक्षा का असर पड़ा था। ईरान में भी जैनधर्म प्रचलित था। उनके मतानुसार अक्षयन (Oxiana), कस्पिया (Kaspia) और बल्ख एवं समरकन्द के नगर जैनधर्म के मुख्यकेन्द्र रहे। निस्सन्देह ईरानियों में सूर्योपासक सम्प्रदाय का जन्म जैन राजा आनन्दकुमार के निमित्त से हुआ जैनशास्त्र बताते हैं । उधर जरदस्त (Zoroaster II) के विषय में कहा जाता है कि उसपर जैन श्रमणों की अहिंसा ने काफी असर डाला था; जिसके परिणामस्वरूप उसने हिसक यज्ञों और बलिदानों का अन्त कर दिया था। जैनधर्म की अहिंसा का प्रभाव ईरान में बहुत समय तक रहा था। मुसलमानों के शासनकाल में भी उसका प्रभाव देखने को मिलता है। अयुअला नामक मुसलमान दरवेश का जीवन अहिंसा के रंग में रंगा हुआ था। वह हिंसा से ऐसा भयभीत था कि चमड़े के जते भी नहीं पहनता था। अनुमान किया जाता है कि बसरा को जो जैन व्यापारी जाते थे उनके सम्पर्क में वह आया था और उनकी अहिंसा से प्रभावित हुआ था। आज के जैन व्यापारियों को अपने पूर्वजों की इस धर्मलगन से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये।
इस प्रकार अफगानिस्तान, अरब और ईरान में जैनधर्म के अस्तित्व का पता चलता है। आज पुनः हमको जैनधर्म का प्रचार सारे संसार में करना है। अहिंसा धर्म के प्रवार को श्राज विश्व को आवश्यकता है। | Oxiana, kaspia and cities of Balkh and Samarkand, were early centres of their faith". ---The short studies in Science of Compartive
___Religion Intro-p.7 २ पाय पुगण देग्यो : 3 Jaina Antiquary, Vol IX, pp. 14-19 4 Der Jainismus, p.