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[ भाग १५
आदि ऐसी बातें हैं जो साम्प्रदायिकता से अधिक सम्बन्ध रखती हैं। इसी तरह दिगम्बसचार्य का अपनी विजय के लिये छिपकर राज- माता के पास जाना और वहां द्वारपाल के द्वारा तिरस्कृत होना भी है। यदि कुमुदचन्द्र वास्तव में इतने बड़े विद्वान् थे जितना उन्हें बतलाया गया है तो वे इस तरह के गर्ह्य उपाय काम में नहीं ला सकते थे । और यदि उन्होंने ऐसे उपाय कामं में लिये तो कहना पड़ेगा कि देवसूरि के प्रतिद्वन्दी कोई विद्वान् नहीं थे । अस्तु,
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भास्कर
जो हो, हमें तो खेद इसी बात का है कि इतिहासज्ञ जन भी साम्प्रदायिकता पूर्ण चित्रणों को इतिहास कहकर उसका प्रचार करते हैं ।
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