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चन्द्रगुप्त-चाणक्य इतिवृत्त के जैन कार
[ले० श्रीयुत बा० ज्योति प्रसाद जैन एम. ए., एल-एल० बी० ]
सम्राट चन्द्रगप्त मौर्य तथा राजनीति के महान् पण्डित प्राचार्य चाणक्य भारतीय इतिहास क्षितिज के प्रारंभिक पकारागान नक्षत्रों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। यदि मौर्य चन्द्रगप्तको प्रथम ऐतिहासिक भारतीय साम्राज्य स्थापित करगे का श्रेय प्राप्त है, तो आचार्य चाणक्य केवल उक्त साम्राज्य के कर्णधार एवं कुशल व्यवस्थापक थे वरन् अधना भारतीय राजनीतिविज्ञान के प्रख्यात आदि नियामक एवं प्रणेता भी थे।
इतिहास के विद्यार्थी को उक्त दोनों व्यक्तियों के विषय में आज बहत कुछ सामग्री उपलब्ध है, अनेक प्राधनिक इनिहासान्वेषकों एवं इतिहास लेम्बोंने उन के सम्बन्ध में पर्याप्त लिया है। किन्तु जब हम तरसम्बन्धो पतिय मूलाधारों पर दृष्टिपात करते हैं तो उन्हें चार प्रकार का पाते हैं ---(१) प्रथम - विदेशी (यलानी) लवकों के वर्णन हैं जो ४ थी शताब्दी ईस्वी पूर्व के नतुथ पाद में नया का स मापक में पाये । विशेषकर, सिकन्दर गहान की याकममा कारी सेना से सम्न (३२६-३२३ ई० प्र०) यवन लेखकों तथा यवनराज सेल्यूकस द्वारा मगर ज्य दरबार में भेजे गये यनानी गजदन मेगस्थनीज तथा उनके आधारपर टैगो, जस्टिन, करटिस आदि' यनानी इतिहासकारों द्वारा लिखित भारत सम्बन्धी वृत्तान्तों में भारतवर्ष की तत्कालीन राज्यशक्ति, राज्य व्यवस्था, एवं देश तथा समाज की दशा के अपर अच्छा प्रकारा पड़ा है। परन्तु इन लेखकों ने मन्त्रीश्वर चागाक्य अथवा सम्राट चन्द्रगप्त मौर्य का कोई स्पष्ट नामोल्लेख भी नहीं किया
और न उनके व्यक्तित्व अथवा जीवन सम्बन्धी विशिष्ट घटनाओं के विषय में ही कुछ लिखा। तत्कालीन भारतस्थ प्राचीन नरेश का नाम उन्होंने सैन्ड्रोकस, सैन्ड्रोकोटस, सैन्डोक्रिप्टस, सैन्ड्रोकुटस श्रादि रूपों में, थोड़े-थोड़े अन्तर को लिये हुए दिया है, जिसका कि १८ वी शताब्दी के अन्त में सर विलियमजोन्स की कल्पना के आधारपर आधुनिक इतिहासज्ञ विद्वानोंने सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ प्रायः सुनिश्चितरूप से समीकरण मान लिया है. यद्यपि उक्त समीकरण में मतभेद की पर्याप्त गुजायश है और कितने ही विद्वान् प्रबल प्रमाणाधार से उसे भ्रमपूर्ण समझते भी रहे हैं।
(२) दूसरा अाधार ब्राह्मण अनुश्रुति एवं साहित्य है । विष्णु आदि हिन्दू पुराणों में तो भविष्यवाणी के रूप में प्रायः केवल इतना उल्लेख ही प्राप्त होता है कि 'नवनन्दों का
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See Mccriudel's Translations. Viz. T. L. Shah--Ancient India Pt II.