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[ भाग १५
इस सुन्दर और उपयोगी प्रकाशन के लिये ज्ञानपीठ तथा सम्पादक धन्यवाद के पात्र हैं। प्रत्येक मन्दिर में इसे मगाना चाहिये, जिससे प्रकाशकों को प्रोत्साहन हो और इस तालिका का द्वितीय भाग तैयार कराया जाय । चीज निस्सन्देह अच्छी है, इस एक ही प्रन्थ से ४००० ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है । अन्तरंग के समान इसका बाह्य कलेवर भी रमणीय है । साहित्य-प्रेमियों को इससे लाभ उठाना चाहिये ।
भास्कर
मदनपराजय [हिन्दी अनुवाद सहित ] - रचयिताः कविवर नागदेव; सम्पादकः प्रो० राजकुमार जैन साहित्याचार्य; प्रकाशकः भारतीय ज्ञानपीठ काशी; पृष्ठ संख्या: ९४+१४८; मूल्यः आठ रुपये ।
इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में प्रो० राजकुमार की ७८ पृष्ठ की विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना है, जिसमें आपने भारतीय आख्यान-साहित्य को धर्मकथा, नीतिकथा, लोककथा और रूपात्मक आख्यान इन चार भागों में विभक्त किया है। धार्मिक कथा साहित्य का वैदिक, बौद्ध और जैन इन तीनों सम्प्रदायों के अनुसार अच्छा ऐतिहासिक वर्णन किया हैं तथा धर्मकथाओं के विकास को बतलाते हुए जीवन के साथ उनका अनुस्यूत सम्बन्ध बतलाया है। शेष तीन प्रकार के आख्यान साहित्य का भी विकासक्रम की दृष्टि से सुन्दर विवेचन किया है।
प्रस्तावना के अगले अंश में मदन पराजय ग्रन्थ की कथा, उसका आलोचनात्मक परिचय, पात्रों का समीक्षात्मक चरित्र चित्रण, रूपकयोजना, ग्रन्थ की भाषा एवं अन्य रूपकों में प्रस्तुत ग्रन्थ का स्थान, नागदेव कवि का परिचय आदि विषयों का समावेश बड़े सुन्दर ढंग से किया है ।
अनुवाद अच्छा हुआ है, पाठक भाषानुवाद पर से मूल ग्रन्थ को हृदयंगम कर सकते हैं । पारिभाषिक और विशेष शब्दों के अर्थ को अवगत करने के लिये अकारादि क्रम से एक कोश दिया है, जिसके सहारे संस्कृत भाषानभिज्ञ भी ग्रन्थ के भाव को सरलता पूर्वक समझ सकते हैं । ग्रन्थ को सर्वाङ्गीण सुन्दर बनाने का प्रयत्न प्रतिभाशाली, विद्वान सम्पादक का प्रशंसनीय हैं। छपाई, सफाई और गेटप अत्यन्त सुन्दर हैं। पाठकों को इसे मंगाकर स्वाध्याय करना चाहिये ।
कर लक्खण [सामुद्रिक शास्त्र ] सम्पादकः प्रो० प्रफुल्लकुमार मोदी, एम० ए०; प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ काशी; पृष्ठ संख्याः १४ + २२; मूल्यः एक रुपया ।
इस ग्रन्थ में ६१ प्राकृत की गाथाएँ हिन्दी अनुवाद सहित दी गई हैं। यह सामुद्रिक शास्त्र की एक छोटी-सी रचना है, इसमें अंगुली और नखों की परीक्षा, मणिबन्ध,