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नीतिकाक्यामृत और सामारधर्माहत
[ लेखक-श्रीयुत पं० हीरालाल शास्त्री, दि. जैन संघ मथुरा ]
नीतिवाक्यामृत के कर्ता आचार्य सोमदेव से सागारधर्मामृत के कर्ता पंडित प्रवर आशाधरजी जगभग ढाई-सौ वर्ष पीछे हुए हैं। पं० पाशाधर जी पर आचार्य सोमदेव की रचनाओं का यथेष्ट प्रभाव है। उन्होंने जहां तहां अपनी रचनाओं में 'यदा सोमदेव पंडित:' कह कर उनके ग्रंथों से प्रचुर प्रमाण उद्धृत किये हैं। ५० आशाधर जी की सबसे बड़ी कृति अनागार धर्मामृत और सागार धर्मामृत का नाम-संस्करण भी प्राचार्य सोमदेव के नीति वाक्यामृत का ऋणी है।
पं० भाशाधर जी ने नीतिवाक्यामृत के अनेकों सूत्रों को पद्यरूपी सांचे में ढालकर उन्हें ज्यों का स्यों अपनाया है। यहां ऐसे कुछ अवतरण दिये जाते हैं, जिनसे उक्त बात की पुष्टि में कोई सन्देह नहीं रहेगा। (१) आचारानवद्यत्वं शुचिरुपस्करः शारीरी च विशुद्धिः करोनि शूद्रमपि देवद्विजतपस्विपरिकर्मसु योग्यम् ॥१२॥
(नीतिवी पृ०८४) शूद्रोऽप्युपस्कराचार वपुः द्वयाऽस्तु तादृशः । जात्या हीनोऽपि कालादिलब्धौ ह्यात्माऽम्ति धर्मभाक् ।।
(सागार ध० अ०२ श्लो०२२) (२) प्रत्यहं किमपि नियमेन प्रयच्छतस्तपस्यतो वा भवन्त्यवश्यं महीयांसः परे लोकाः ॥२७॥
( नीतिघा० पृ० १७) नियमेनान्वहं किञ्चिद्यच्छतो वा तपस्यतः । . सन्त्यवश्यं महीयांसः परे लोका जिनश्रितः।।
(सागारध० अ०२,४६) (३) निवृत्तस्वीसंगस्य धनपरिग्रहो मृतमंडनमिव ॥६॥
__ (नीतिवा० पृ० २२३) स्त्रीतश्चित्तनिवृत्तं चेन्ननु वित्तं किमीहसे। मृतमंडनकम्पो हि खोनिरीहे धनग्रहः ।।
(सागार० अ०६, ३३)