Book Title: Babu Devkumar Smruti Ank
Author(s): A N Upadhye, Others
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

View full book text
Previous | Next

Page 471
________________ भास्कर [ भाग १५ करते थे, उन्होंने भी जैनधर्म की उन्नति में पूरा सहयोग प्रदान किया था। इस प्रकार कर्णाटक के सभी राजाओं ने जैनधर्म का विस्तार किया। जैन कला और साहित्य-राष्ट्रकूट प्रभृति उपयुक्त राजाओं के काल में जैन साहित्य और कला की दृष्टि से विचार करने पर ज्ञात होता है कि जैन कला और जैन साहित्य का विकास इस समय में बहुत हुआ है। राष्ट्रकूट और चालक्य वंशों के राज्यकाल में जैनधर्म के प्राबल्य ने समस्त कर्णाटक को अहिंसामय बना दिया था, जिसके फनम्बरू ा राष्ट्र खूब फलाफला, देश में सुख समृद्धि की पुण्यधारा वही । फलतः मानव समाज के हृदय का आनन्द अपनी संकुचित सीमा को पार कर बाहर निकलने लगा, जिससे कला और साहित्य का प्रणयन अधिक हुआ। कला और साहित्य प्रेमी इन राजाओं के दरबार में साहित्यिक ज्ञान गोष्ठियाँ होती थी, इन गोष्ठियों में होने वाली चर्चाओं में गजा लोग स्वयं भाग लेते थे। राष्ट्रकूट वंश के कई राजा कवि और विद्वान् थे, इससे इनकी सभा में कवि और विद्वान् उचित सम्मान पाते थे। धवला और जयधवला टीकाओं का सृजन राष्ट्रकूट वंशीय राजाओं के जन साहित्य प्रेम का ज्वलन्त निदर्शन हैं। दर्शन, व्याकरगा, काव्य, पुरागा, ज्योतिष, गणित, आयुर्वेद प्रभृति विभिन्न विषयों पर अनेक मौलिक रचनाएँ लिखी गई। इस काल के जैन कवियों ने दूतकाव्य और चम्पृकाव्य को परम्परा प्रकट कर काव्यदोत्र में श्रृंगार रस के स्थान पर शान्तिरस का समावेश किया, जिनसेनाचार्य का पावाभ्युदय, आदिपुराण, वर्द्धमानपुर ण, पार्श्वम्तुति; सोमदेवाचार्य का यशस्तिल : चम्पू . नीतिवाक्यामृत; गुणभद्राचाय का प्रात्मानुशासन, उत्तरपराण, जिनदत्तचरित्र; वादिराज का यशोधरचरित, पाश्वनाथचरित, एकीभावस्तोत्र, कुकुरस्थचरित, न्यायविनिश्चय विवरण और वादमंजरी; महावीराचार्य का गणितसार संग्रह; शाकटानाचार्य का शाकटायन व्याकरण तथा उसकी टीका अमोघवृत्ति प्रभृति संस्कृत जैन रचनाएँ उल्लेखनीय हैं। अपभ्रंश भाषा में कवि पुष्पदन्त का महापुराणा, जसहर चरिउ, रणायकुमार चरिउ; कवि धवल का हरिवंश पुराण, कवि स्वयंभू का हरिवंशपुगण, पउम चरिय, देवसेन का सावयधम्म दोहा और अभयदेव सूरि का जयतिहुयण स्तोत्र इत्यादि ग्रन्थ भी जैन साहित्य की अमूल्य निधि हैं। इन ग्रन्थों के अतिरिक्त कन्नड़ भाषा में भी काव्य, पुराण, नाटक, वैद्यक, ज्योतिष, नीति प्रभृति विभिन्न विषयों पर अनेक ग्रन्थ लिखे गये थे। साहित्य की उन्नति के साथ जैनों ने कला के क्षेत्र में भी प्रगति की थी। राष्ट्रकूट, चालक्य, कदम्ब, होयसल इत्यादि वंश के राजाओं ने अनेक जैन मन्दिर और जैन मूर्तियों का निर्माण कराया था। यद्यपि जनों ने अपनी कला को शान्तरस से ओत-प्रोत रखा था तथा अपने धार्मिक सिद्धान्तों के अनुसार मूर्ति और मन्दिरों पर बीतरागता की ही भावनाएँ अंकित की थीं, फिर भी सर्वसाधारण के लिये आकर्षण कम नहीं था। अमरेश्वरम् में एक

Loading...

Page Navigation
1 ... 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538