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किरण १ ]
विविध विषय
का शासन स्थापित हो गया। लेकिन सुहानिया के दुर्भाग्य का उदय हो चुका था, उसकी उन्नति और श्री सदा के लिये रूठ गयी थी; फलतः कन्नौज के शासक भी वहाँ अधिक दिन तक नहीं रह सके तथा यह सुन्दर नगर उजड़ने लगा। इसका शासन पुनः ग्वा लियर के अन्तर्गत पहुँचा, पर इसके अधिकांश मन्दिर, मठ धराशाही होने लगे । मुसलमान बादशाहों की सेना का प्रवेश भी इवर हुआ, जिसने सुन्दर मृर्त्तियों को भग्न किया और मन्दिरों को धूलिसात कर दिया ।
१६ फुट
अभी हाल में इस नगर में भूगर्भ से श्री शान्तिनाथ भगवान की एक विशालकाय ऊँची प्रतिमा निकली है तथा और भी अनेक जैन मूर्तियाँ वहाँ पर विद्यमान हैं। सुनने में आया था कि ब्र गुमानीलाल को शासन देवता ने स्वप्न में मूर्तियों की बात कही थी; उन ब्रह्मचारी जी के कहने पर ही वहाँ के समाज ने उस बीहड़ जंगल में खुदाई की जिसमें अनेक प्रतिमाएँ निकली। आज इस क्षेत्र का प्रबन्ध मुरेना के बाद महीपाल जी जैन के मन्त्रित्व में हो रहा है, प्रतिवर्ष अब यहाँ पर वार्षिक मेला भी लगता है। खुदाई करने पर अभी और भी मूर्तियाँ तथा जैन संस्कृति की अन्य वस्तुएँ निकल सकती हैं। पुरातत्त्वजों ने जंगल में पड़ी हुई जैन मूर्त्ति को देखकर ग्वालियर की रिपोर्ट में लिखा है कि यह मूर्ति आज से कम से कम एक हजार वर्ष पहले की अवश्य है ।
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(२)
कवि वृन्दावन कृत सतसई - सप्तशती
कविवर वृन्दावनजी प्रतिभाशाली कवि थे, इनका जन्म सं० १८४८ में शाहाबाद जिले के बारा नामक गाँव में गोयल गोलीय अग्रवाल कुल में हुआ था । इनके पिता का नाम धर्मचन्द और माता का नाम सिताबी था । इन्होंने चौबीसी पाठ, वृन्दावन विलास, प्रवचनसार टीका, तीस-चौबीसी पूजा-पाठ आदि प्रन्थ लिखे हैं । 'भवन' में उक्त कविवर की एक सतसई है; इसमें ७०० दोहे हैं। इस ग्रन्थ के अन्त में प्रशस्ति दी गई है :
इति वृन्दावनजी कृत सतसइया चैत्र कृष्ण १५ संवत १६५३ गुरुवार आठ बजे रात्रि को आरामपुर में बाबू अजितदास के पुत्र हरीदास ने लिखकर पूर्ण किया सो जैवंत होहु शुभं शुभं शुभं ॥
कविवर के पौत्र द्वारा लिखित इसको प्रामाणिक मानना चाहिये । किन्तु इसके भीतर ऐसे भी अनेक दोहे हैं, जो कविवर के पूर्वकालीन गिरधर, बिहारी, रहीम,