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किरया 9 ]
दक्षिण भारत में जैनधर्म का प्रवेश और विस्तार
जैन प्रचारक यद्यपि लंका को समुद्र मार्ग से गये थे, पर लौटते समय वे स्थल मार्ग द्वारा दक्षिण के रास्ते से आये थे, यह बात तामिल और बौद्ध साहित्य से स्पष्ट है। श्रतः लंका में जैनधर्म के प्रचार के साथ-साथ दक्षिण भारत में भी जैनधर्म का प्रचार ई० ० पू० ५०० के लगभग या इससे पहले हुआ होगा ।
राजावली कथा एक प्रामाणिक ऐतिहासिक काव्य माना जाता है। इसमें बताया गया है कि विशाख मुनिने चोल और पाण्ड्य प्रान्तों में भ्रमण कर वहाँ के जैन चैत्यालयों की वन्दना की थी तथा वहाँ के निवासी श्रावकों को जैनधर्म का उपदेश दिया था । इससे स्पष्ट है कि भद्रबाहु स्वामी के पहले भी जैनधर्म दक्षिण में था, अन्यथा विशाखमुनि को जिनमन्दिर और जैन श्रावक कैसे मिलते ?
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तामिल साहित्य के प्राचीन व्याकरण अगथियम और उससे प्रभावित तौल्काप्याम के अध्ययन से पता लगता है कि ये ग्रन्थ एक जैनाचार्य द्वारा रचे गये हैं । विद्वानों ने इनका रचनाकाल ई० पू० ४०० माना है । अतएव स्पष्ट है कि ई० पू० ४०० के लगभग दक्षिण भारत में जैनधर्म का व्यापक प्रचार था । संगम 'कालीन तामिल काव्य 'मणिमेवलै' और 'सीलप्पडकारम्' से ज्ञात होता है कि इस युग में जैनधर्म समुन्नत अवस्था में था । 'संगम' युग के समय निर्धारण के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। कुछ लोग ई० पू० २०० के पूर्व के समय का नाम संगम या प्राथमिक युग बतलाते हैं तथा कतिपय विद्वान् ई० पू० चौथी शताब्दी से ई० दूसरी शताब्दी तक के काल समूह को। यदि इस विवाद में न भी पड़ा जाय तो भी इतना तो सुनिश्चित है कि भद्रबाहु स्वामी के दक्षिण पहुँचने के पूर्व ही जैनधर्म वहाँ विद्यमान था ।
कन्नड़ रामायण में बताया गया है कि श्रीमुनिसुव्रत भगवान् के तीर्थंकर काल में श्री रामचन्द्रजी ने दक्षिण भारत की यात्रा की थी, इस यात्रा में उन्होंने जैन मुनि श्रर . जैन चैत्यालयों भी वन्दना की थी ।
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भागवत पुराण में भगवान् ऋषभदेव के परिभ्रमण की एक कथा आई है। उस कथा में बताया गया है कि जिस प्रकार कुम्हार का चाक स्वयं चलता है, उसी प्रकार भगवान् ऋषभदेव का शरीर कोंक, वेंकट, कुटक इत्यादि दक्षिण कर्णाटक के प्रदेशों में गया । कुटक पहाड़ से सटे हुए जंगल में उन्होंने नग्न होकर वहाँ तपस्या की। अचानक जंगल दवाग्नि से भस्म हो गया और कोंक, वेंकट और कुटक के राजाओं ने ऋषभदेव के धर्म मार्ग को ग्रहण किया । इससे स्पष्ट है कि कुटक ग्राम, हवेंगडि, कोंक आदि दक्षिण भारत
1. See Jaina Gazette, Vol. XIX, P. 75.
2. Buddhistic Studies, PP. 3, 68,
३ जैनसिद्धान्त-भास्कर भाग १० किरण १ तथा भाग ६ पृ० १०२