________________
किरण १ ]
मणि, सीलप्पडिकारम्, वलणप्पदि आदि तामिल भाषा के काव्य विशेष सुन्दर माने जाते हैं। इनके अतिरिक्त पेरकंदै, यशोधरकाव्य, चूड़ामणि, एलादी, कलिंगतुप्परणी, नन्नूल, नेमिनाद, यप्पांरु, श्रीपुराणं, मरुमंदर पुराणं श्रादि तामिल ग्रन्थ भी कम प्रशंसा के योग्य नहीं हैं। यह बात निर्विवाद सिद्ध है कि व्याकरण, छन्द, अलंकार, दर्शन और जैनागम प्रभृति विभिन्न विषयों के उत्तमोत्तम ग्रन्थ लिखकर तामिल वाङ्मय को समृद्धशाली और उत्कृष्ट स्थिति में लाने का श्रेय जैनाचार्यों को ही है । जैनाचार्य पूज्यपाद के शिष्य जनन्दि ने पाण्ड्यों की राजधानी मदुरा में एक विशाल जैन संघ की स्थापना की थी; इस संघ द्वारा तामिल प्रान्त में जैनधर्म का खूब प्रचार हुआ। आचार्य कुन्दकुन्द ने पोन्नूराम के निकट नीलगिरि नामक पर्वत पर तपस्या को थी, इनके आश्रम में आकर पल्लव वंशी शिवम्कन्दव महाराज ने प्राभृत य का अध्ययन किया था ।
तामिल देश के इतिहास में जैनधर्म ई० तीसरी और चौथी शताब्दी में लुप्त प्रायः दिलाई पड़ता है । पाँचवीं और छठीं सदी में शैवधर्म का बड़ा भारी जोर रहा है, फिरभी जैनों की तात्कालीन परिस्थिति का चित्रण वैष्णव और शैवपुराणों में मिल जाता है। सातवीं शताब्दी से लेकर ११ वीं शताब्दी तक शैवधर्म के समानान्तर जैनधर्म भी चलता रहा। गंगवाडि के गंगवंशीय राजाओं ने इस धर्म को विशेष प्रोत्साहन दिया, जिससे विधर्मियों के द्वारा नाना प्रकार के अत्याचारों के होने पर इसकी क्षीण रेखा ११ वीं सदी के अन्त तक दिखलाई पड़ती रही ।
।
अनेक विदेशी विद्वानों ने अपने - अपने इतिहास में तामिल प्रान्त की जैनधर्म की उन्नति का वर्णन किया विशप काल्डवेल का कहना है कि जैनों की उन्नति का युग ही तामिल साहित्य की उन्नति का महायुग है । इन्होंने तामिल, कनड़ी और दूसरी लोकभाषाओं का प्रचार किया, जिससे वे जनता के सम्पर्क में अधिक आये । सरवाल्टर इलियट के मतानुसार दक्षिण की कला और कारीगरी पर जैनों का अमिट प्रभाव है। तामिल प्रदेश में जैनों के द्वारा ही अहिंसा का विशेष प्रचार हुआ. जिससे जनता ने मद्य, मान्स और मधु भक्षण का भी त्याग कर दिया था। ब्राह्मणों पर जैनों की अहिंसा का इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि यज्ञों में भी हिंसा बन्द हो गई जीव हिंसा-रहित यज्ञ किये जाने लगे । कुछ विद्वानों का अभिमत है कि विग्रहारावना, पुराणपुरुषों की पूजा, गणपति पूजा, देवस्थान-निर्माण-प्रथा और जीर्णोद्धार किया प्रभृति बातें शैव और वैष्णव मतों में जैन सम्प्रदाय की देखादेखी प्रचलित हुई । श्रतएव तामिल देश में ई० पू० ३०० से लेकर ई० ११०० तक जैनधर्म का खूब प्रचार हुआ, किन्तु इसके अनन्तर शैव और वैष्णवों के धर्मद्वेष के कारण प्रभावहीन हो गया ।
कर्णाटक - इस प्रान्त में जैन धर्म का विस्तार बहुत हुआ, वहाँ की राजनीति, धर्म, संस्कृति, साहित्य, कला, विज्ञान, व्यापार प्रभृति सभी बातें जैनधर्म से अनुप्राणित थीं ।
दक्षिण भारत में जैनधर्म का प्रवेश और विस्तार
४९