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किरण १ ]
Harfara
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मथुरा जैन संस्कृति का बड़ा केन्द्र था इसके प्रमाण में इस शिलालेख का उल्लेख गर्व के साथ किया जाता है। यहाँ धर्मशील विद्वान, दानशूर लोग मुँड के कुँड में भाया करते थे। जैनानुयायियों की तो वहाँ बड़ी ही चहल-पहल रहा करती थी। वीनीचों ने इसका उल्लेख अपने लेखों में स्पष्टतया किया है। इस प्रकार जैन संस्कृति का मंगल ध्वज कट्टर हिन्दुसाम्राज्य के कलेजेके पास गर्व के साथ फहरा करता था। तीसरा शिलालेख युक्त प्रान्त के कहा गाँव, जिला गोरखपुर में मिला है जो स्कन्दगुप्त के समय में खड़ा किया गया था, यह २४ फीट ४ इंच स्तंभ पर लेख खोदा गया है इसका काल १४१ गुप्तवर्ष याने ई० स० ४६० है । यह लेख इस बात को प्रकट करता है, कि नाम के व्यक्ति को दुनिया की क्षणभंगुरता प्रतीत हुई, उसने अहंत पदके प्रमुख पाँच तीर्थकरों की मूर्तियाँ लाग्छ के सहित स्थापित कीं । वे श्रादिनाथ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर नाम से प्रसिद्ध थीं; इस तरह उसने स्वार्थ साधन के साथ २ जगतकल्याण का दरवाज़ा खोल दिया । मूर्तियों के नीचे शिलालेख दिखाई देता हैं। पार्श्वनाथ को नममूर्ति ३ फीट ऊँची है, उसके सिर पर छत्र के तौरपर शेषनाग फण काढ़ खड़े हैं, उसके पार्श्व में दोनों ओर दो सेवक भी खड़े हैं। इन थोड़े से शिलालेखों में ४ थी तथा ५ वीं शताव्दि की जैन धर्म संबंधी कल्पना मिल जाती है 1
All these few instances prove that Jainism claimed a fairly large followrs in different parts of Northern India.
इसमें कोई शक नहीं कि उत्तर भारत में असंख्य जैनानुयायी बस गये थे। वहाँ उनके गणित मन्दिर हैं और उनके बनने में पहले तीर्थस्थान के लिए उन स्थानों की बड़ी प्रसिद्धि थी । शिलालेख को पढ़ते हुए इस बातका ध्यान रखना चाहिए कि उपर्युक्त स्थानों पर जैन धर्मियों की तादाद बहुत अधिक थी ।
(५) चीनी यात्री:
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परदेश के बहुत कम लोगोंने हिन्दुस्तान की यात्रा की। उनमें से इने गिने यात्रियों ने परिस्थिति का निरीक्षण किया और यात्रा पर्णन लिखने वाले तो गिनती के हैं। फाहियान, मुंग-युन तथा युवामुत्संग प्रमुख यात्री थे, जिन्होंने अपनी यात्रा का वर्णन चीनी में किया है। गुप्तकालीन हिन्दुस्तान का इतिहास लिखने में वह बड़ा सहायक हो सकता हैं 1
फाहियान :- यह शेनल्सी प्रांत का निवासी था। जिसने १४ वर्ष तक ७५०० मील यात्रा की । इसने बुद्धधर्म की दीक्षा ली, जब यह ३ वर्ष का था । बीस वर्ष की उम्र में इसकी माता ने इसको गृहस्थ बनने का बहुत श्राग्रह किया, पर वह न माना । २५ वर्ष की उम्र में (बौद्ध-धर्म-ग्रंथ) पाने की तीव्र अभिलाषायें लेकर हिन्दुस्तान की यात्रा में अकेला रवाना हुआ । शेन प्रांत को छोड़ कश्मीर, यारकंद, पेशावर तथा तक्षशिला से होकर हिन्दुस्तान में श्राया । सिर्फ धर्म का