________________
efore water पट्टे परवाने
[ ले० श्रीयुत भँवरलाल नाहटा ]
प्राचीन काल से राजाओं का प्रभाव जन साधारण पर बहुत अधिक रहा है । इसीके परिचायक "यथा राजा तथा प्रजा" नामक लोकोक्ति सर्वत्र प्रसिद्ध है। इसके दो प्रधान कारण हैं, पहला तो राजा को लोग ईश्वर मानकर उनके वचन एवं अनुशासन को मान्य करते थे और राजा के प्रसन्न होनेपर सम्मान, धनादिका लाभ होने की भी आशा रहती है। अतः स्वार्थ एवं दबाव कारण राजा लोग जिस कार्य से प्रसन्न रहें वही कार्य करने की जनता की प्रवृत्ति होती है । दूसरा है " महाजन येन गतः स पन्थाः " " एवं गतानुगतिको लोकः " वाला जन मानस वास्तव में हरेक व्यक्ति विचारक सुशिक्षित एवं विवेकी नहीं हो सकता | सभी समय में यही देखने में आता है कि कुछ इने गिने व्यक्ति ऊँचे उठते हैं अधिकांश व्यक्तियों के विचारों एवं प्रवृत्तियों का स्तर साधारण ही रहा करता है । श्रतः जन-साधारण को जो जिस तरफ झुकाना चाहता है प्रभावशाली व्यक्ति उसी ओर मुका सकता है । राजाओं के पास तो अनेक प्रकार के साधन एवं सता रहती है अतः उनका प्रभाव सर्वाधिक होना स्वाभाविक ही है। इसी बात को ध्यान में रखकर समय समय पर धर्म प्रचारकों ने अपने धर्म के प्रति राजाओं एवं विशिष्ट अधिकारियों को आकर्षित करने का लक्ष्य रखा व प्रयत्न किया है।
भारतवर्ष के इतिहास का सिंहावलोकन करने पर यह स्पष्ट होता है कि राजाओं से अधिक प्रभावशाली व्यक्ति यदि कोई होता था तो वह धर्मप्रचारक | क्योंकि भारत अभ्या प्रधान देश है यहाँ त्याग, तपश्चय एवं धर्म के प्रति सब समय अत्यधिक आदर रहा 1 अतः राजा महाराजा भी धर्मपचारक महापुरुष ऋषि मुनियों के पैरों में अपना मस्तक कुकाते थे। भ० महावीर के समय पर ही विचार करें तो कितने राजा महाराजा यदि उनका जहाँ कहीं उपदेश होता बड़े भक्ति भाव से श्राते एवं उससे प्रभावित होकर त्याग गार्ग स्वीकार कर लेते थे । इसी प्रकार महात्मा बुद्ध का प्रभाव बौद्ध ग्रन्थों से भलीभाँति विदित होता है । उसके पश्चात् सम्राट अशोकने बौद्ध धर्मका कितना जबरदस्त प्रचार किया व
सम्राट् सम्पति ने जैन धर्मका, यह जैन एवं बौद्ध साहित्य से स्पष्ट | दक्षिण में दि० 2 सम्प्रदाय को जहाँतक श्राश्रय मिला वहाँ तक उसको बढ़ती होती ही गयी | मारवाड़ एवं गुजरात में श्वे० सम्प्रदाय को राजाश्रय मिला तो उसका सितारा चमक उठा । जैन इतिहास के विद्यार्थी से भी ये बातें अपरिचित नहीं हैं ।
मध्यकालीन भारतीय इतिहास से यह भी ज्ञात होता है कि अपने अपने धर्म एवं सम्प्रदाय का प्रभाव बढ़ाने के लिये राजाओं को आकर्षित करने के लिये धार्मिक विषयों पर