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किरण
कतिपय प्राचीन पट्टे परवाने
वगैरह सरव जैनी परम सतगरु श्रीगरुदेव करी गरू परमेसर रूप माने हैं भेट नजर पधरामणी पूजन सेवा बंदगी इप्पारां करे है और दूजा भट्टारक श्रीपूज है तिणने तो महाजन कितराक जती माने है सो विचार राखी जो सरब देसरा जतो महाजन मथेन भट्टारक लुकीपासु वह वा मुँह बंधा वगैरह सरव जैन इणी श्रीगुरुदेव री आगे जा में चालसी श्रीपातसाही हकुम छ। संवत् १७१६ रा माहसुदि ५ मुकाम अहमदावादे उपर .....''श्राप राठौर ....... श्री गरुजी की इणी शिष्य परम्परा श्री मुख्य एक पाटधारी शिष्य सीसदा मरजाद मानसी राखसी परम सतगुरु श्रीगुरुदेवजी-मरजाद लोपे सो महापापी ।