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[ भाग १५
राज्य का
कछवाह सीसोदियों के तो विशेष सदैव श्री गुरु ईश्वर रूप छै श्री कलि केवली जगतगुरु पूज्य श्रीजिनचन्द्रसूरिजी गुरुदेव महाराज की क्रिपा कर अठा कौ राज्य छै । श्री गुरुदेव छै, अठारा श्री कुल गुरु छै, सदैव अठाका श्रीगुरुदेव है, श्रीगुरु परमेश्वर रूप ae are at राज्यको प्रताप श्री गुरुदेवाँ के चरणारविन्द के प्रसाद कृपा कौ छै चरणारविन्दां डंडोत कर अठे कृपाकर पधारे तो अरज करोला, श्रठा कौ राजश्री गुरुदेवां को श्रीगुरुदेवां की शिष्य परंपरा को विशेषकर पाटधारी शिष्य को परम सतगुरु पूज्यभाव अठै सबैव रहैलो असल छत्री वंश कछवाहौ सदैव परम सतगुरु पूज्यभाव राखैलौ, मानैलो, मरजादन लोपै लै । मरजाद लोपैलो सो कुंभी पाक में पडैलो, अठाकी अरज करोला श्रीगुरुदेव ठा पधारे सो अरज राज करौला ।
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सही
भास्कर
श्रीकृष्णजी
मोहर छाप
श्रीजिनराजसूरिजी
स्वस्ति श्री महाराजाधिराज महाराजा श्रीगजसिंहजी महाराज कुंवर श्री अमरसिंहजी वचनातु जगतगुरु पूज्य परम सत्गुरु श्रीगुरुदेव जैन पातसाह भट्टारक श्री पूज्य जंगम युग प्रधान श्री जिनराज सूरीसरजी नुं भेंट करी लिखी दियौ सरब देस में पातसाही कागदा में लिखी भाव भगती रहसी, जती महाजन वगैरह सरब जैनी श्रीगुरुदेवां का हकम माफक चालसी, आदेश उपदेश मानसी, भेंट निजर पधरावणी पग मंडा सामेल । भाव भगती वगेरे उच्चव श्रीगुरुदेवां रे दिन दिन अधिक होसी सरब उच्छव खरतर गच्छ रा प्रथम तुसी, सरब देश में राज होसी सो उच्छ करावसी श्रीपातसाही हुकम छै । सं० १६१० वर्ष आषाढ वदी १ मु गरीदेवे श्रीमुखपर वदनी भंडारी लूण ।
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स्वस्ति श्री महाराजाधिराज महाराज श्रीजसवंतसिंहजी महाराज कुंवर श्री पृथीसिंहजी वचनात् मुहणौत नैणसी दिसै सुप्रसाद वांची जो तथा जगतगुरु पूज्य परम सतगुरु जैन पातसा श्री पूज श्रीगुरुदेव भट्टारक गुरुजी - "श्री श्री श्री जी देव श्री चरणां री श्राग्या माफक चाल जो । सामेला पगमंडा पधारमणी घाड़ा उछरंग सुंकी जो । पातसाही फरमान परवाना माफक भाव भगती कर जो पातसाही में सरब राजथान में सरब देश में श्री पूज परम सतगुरु ऐ श्रीगुरुदेव है । भट्टारक श्री पूज है । तिके महाजनां रा है महाजन मानसी अठे तो पूज छै जगत श्राचरज भट्टारक श्रीपूज परम सतगुरुदेव है सो इणांने पातसाहजी सरब राजा, राव, नवाब खान, उमराव वगैरह सरब जगत सरब जती महाजन
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