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भ० महावीर के समकालीन नृपतिगणा
[ ले० - श्रीयुत अमरचंद नाहटा ]
"वीर" के गत महावीर जयन्ती विशेषांक में प्रज्ञाचक्षु पं० गोविन्दरायजी का “महावीर के समय का भारत" शीर्षक लेख प्रकशित हुआ है । लेख के शीर्षक एवं श्री फागुल्लजी की टिप्पणी के अनुसार प्रस्तुत लेख भ० महावीर के समय के भारत की स्थिति का दिग्दर्शन करानेवाला होने से बड़ा होना चाहिये । पता नहीं इसके अप्रकाशित अंश में क्या प्रकाश डाला गया है ? पर यदि "वीर" में प्रकाशित लेखांश ही पूर्ण है तो इसका नामकरण "महावीर के समकालीन भक्त नृपतिगण” होना अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है क्योंकि तत्कालीन भारत की स्थिति का इस लेख से परिज्ञान नहीं होता । अस्तु ।
जैसा कि सम्पादकीय टिप्पणी में कहा गया है लेख गवेषणापूर्ण है पर वह पूर्ण एवं भ्रान्त नहीं प्रतीत होता, अतः उसके सम्बन्ध में कुछ प्रकाश डालना श्रावश्यक होने से प्रस्तुत लेख लिखा जा रहा है। आशा है शीघ्र ही गोविन्दरायजी या डा० जगदीशचंद्रजी अदि अन्य अधिकारी विद्वान् महावीर कालीन भारत पर सुन्दर प्रकाश डालकर हमारी जानकारी बढ़ायेंगे । श्रालोच्य लेख की अपूर्णता एवं विचारणीय बातोंपर प्रकाश डालने से पूर्व उसके ऐसे होने के कारण पर अपने विचार प्रकट कर देना भी श्रावश्यक समझता हूं ताकि भविष्य में उनकी ओर ध्यान रखा जाय ।
हमारे विद्वानों के लेखन में मुझे एक बड़ी कमी यह अनुभव हो रही है कि हमारा ज्ञान बहुत कुछ एकाङ्गी है। जैन कहलाने पर भी हम पूरे जैन नहीं, पर अधिकतर दि० या श्वे० ही प्रतीत होते हैं। हमारा पठन पाठन एक सम्प्रदाय के ग्रन्थों तक ही सीमित होने से सम्पूर्ण जैन इतिहास, साहित्या कला, तत्वज्ञान आदि का हमें प्रायः परिचय नहीं होता । अतः सबसे पहले हमें इस कमी को हटाना are है। किसी भी विषयपर लिखने से पूर्व दोनों सम्प्रदायों के प्राप्त साहित्य का समभाव पूर्वक अध्ययन बढ़ाना होगा, तभी हमारा लेखन जैन सम्बन्धित कहलाने योग्य होगा ।
पं. गोविन्दरायजी के लेख से ध्वनित होता है कि उन्होंने जो कुछ लिखा है वह दि० ग्रन्थों के Terr से लिखा है जब कि मेरे नम्र मतानुसार इस विषयपर श्वे० जैनागमों के अध्ययन के बिना ठीक से लिखा ही नहीं जा सकता। तत्कालीन इतिहास का जैसा विशद एवं प्रामाणिक वर्णन जैनागम एवं उनकी नियुकि भास्य, चूर्णि आदि में सुरक्षित है, अन्यत्र श्रप्राप्य है। महावीर कालीन भारत पर लिखने के दूसरे साधन हैं, बौद्ध पिटक ग्रन्थ । जैनागमों के भलीभाँति अध्ययन करनेका सुयोग न भी मिले तो उनके बाधार से लिखित मुनि कल्याणविजयजी का "अमण भ० महावीर” एवं गोपालदास पटेल लिखित " महावीर कथा" इन दो ग्रन्थों का अध्ययन कर लेनेपर काम चलाऊ