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[ भाग १५
राजा गोविन्दराज था तब जैनागमों के अनुसार तत्कालीन मिथिला के राजा का नाम जितशत्रु या जनक था । जितशत्रु के धारिणी नामक रानी थी ।
६ वशाली को आजकल की तिरहुत नगरी होने की संभावना की गई है पर उसका वर्तमान नाम वसाडपट्टी प्रसिद्ध ही है । बह आज भी मुजफ्फरपुर एवं हाजीपुर से २३ मील पर अवस्थित है।
७ श्रावस्ति के राजा प्रसेनजित का नाम जैन साहित्य में जयरीत होना बतलाया गया है पर वह उल्लेख दि० ग्रन्थों में होगा । श्वे० आगमानुसार श्रावस्ति का राजा जितशत्रु था एवं श्वेताम्बिका का राजा प्रदेशी था ।
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भास्कर
८ आराधना कथाकोश के उल्लेखानुसार अवन्ति सुकुमार को महावीर कालीन ( प्रद्योत के राज्य में) बतलाया है पर श्वे० श्रावश्यक चूर्णि आदि प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार वह आचार्य श्रार्य सुहस्ती के समय में हुआ है जिनका समय वी०नि० २४६ से २९९ है । विशेष जानने के लिये विक्रम स्मृति ग्रन्थ में डा० शालंटिकाउ ( सुभद्रा देवी ) का " जैन साहित्य में महाकाल मंदिर" शीर्षक लेख देखना चाहिये ।
अर्थात् गोविन्दरायजी के उक्त छोटे से लेख में बातों में श्वे० प्राचीन साहित्य से मतभेद प्रतीत होता है। श्वेताम्बर जैनागमों एवं चरित्र ग्रन्थों में से उक्त लेख में वर्णित राजाओं के अतिरिक्त जिन राजाओं का उल्लेख श्रमण भ० महावीरादि में मिलता है उनका यहाँ निर्देश कर दिया जाता है 1
३ आलभिया, बनारस, लोहार्गल, काकंदी, कंपिल्ला के तत्कालीन राजा का नाम जितशत्रु था । संभव है जितशत्रु असू राजाओं का एक विशेषण भी हो ।
२ कनकपुर के राजा का नाम प्रियचन्द और रानीका नाम सुभद्रा था। उनके युवराजकुमार वैश्रमणकुमार और युवराज के पुत्रका नाम धनपति था। इनमें से धनपति भ० महावीर से दीक्षित हुए थे।
३ पृष्ठ चंपा के राजा शाल और छोटे भाई युवराज महाशाल महावीर से दीक्षित हुए। इनके राज्यका उत्तराधिकारी इनका भानजा गागन्ति हुआ, उसने भी दीक्षा ली थी ।
४ कोटिवर्ष के राजा किरातराजने साकेत नगर में भ० महावीर से दीक्षा ली।
५ चम्पा के राजा का नाम जिनशत्रु और दत्त लिखा मिलता है । दत्त के रवती रानी व महचंद्रकुमार पुत्र था । कुमारने भ० महावीर से दीक्षा ग्रहण की। पीछे कोशिक ने चंपा अपनी राजधानी बनाई ।
६ पुरिमताल का राजा महाबल था ।
पोतनपुर के राजा प्रसन्नचंद्र ने भ० महावीर के पास दीक्षा ली थी। आवश्यक चूर्णिके अनुसार
ये क्षितिप्रतिष्ठित एवं गुणचन्द्र गणि के अनुसार ताम्रलिपि के राजा थे ।
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