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किरण २]
साहित्य समीक्षा
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जड़ता को दूर करने में पर्याप्त सहायक होंगे। संस्कार समय की देन है, परिस्थितियों की देन हैं, पर कुछ संस्कार सदियों से लिपट कर हमें जड़ बनाये हैं, पर आज के युग में उन मरका कोई उपयोग नहीं है। इस पुस्तक के सभी निवन्धों के पीछे पर्याप्त पिनन है। छगई-सकाई, गेटप आदि अच्छे हैं।
जीपन जौहगे-- ले कफ : श्री रिषभदास रांका; सम्पादक: जमनालाल जैन माहित्यरत्र; मूल्य एक रुपया चार आना। __ प्रस्तुत पुस्तिका में श्री रिषभदाम रांका ने अपने भाई के नाम जो बो० कम० पास कर जीवन-संग्राम में प्रवेश कर रहे हैं, पत्र लिखे हैं। स्व० श्री जमनालाल बजाज के जीवन-सम्मरण पत्र में लिख लिख कर राकाजी ने अपने भाई को उपदेश-संबल दिया है। उदाहरण के लिये घटनाओं का चुनाव बहुत समीचीन है। सत्य और अहिंसा का दान जोवन में प्रयोग स्व. बजाज जी ने किस सफलता से किया, इसके प्रचुर उदारण चुम्नक में है। संस्मरणों द्वारा मनुष्य जीवन में बहुत कुछ सीख सकता है. इस दष्टि से यह पुस्तक उपयोगी है पुस्तक को पत्रावली में लिखकर रांका जी ने संस्मरणों को प्रभावशाली बना दिया है। छपाई अच्छी है।
- प्रो. राजेश्वरीदत्त मिश्र एम० ए० समाज मनोविज्ञान के कुछ पहलू - लेखकः प्रमोद कुमार एम० ए०; प्रकाशकः मरला पुस्तक माला, जमशेदपुर; मूल्यः पाँच रुपये।
हिन्दी भाषा में समाज मनोविज्ञान पर यह प्रथम प्रयास है। मनोविज्ञान के विद्यार्थियों के लिये तो यह लाभदायक है ही, साथ ही रोचक शैली में होने के कारण माधारण पाठकों के लिये भी उपादेय है। कोई भी पाठक इसके द्वारा अपने व्यावहारिक जीवन में बहुत कुछ लाभ उठा सकता है। लेखक का वैज्ञानिक और प्रगति. शील दधिकोण प्रशंसनीय है। सामाजिक विषयों पर यद्यपि अधिक वैज्ञानिक विचार नहीं किया है फिर भी हिन्दी भाषा में इस पुस्तक का महत्व है।
-प्रो. रामनरेश सिंह एम० ए० भारतीय साहित्य सदन की प्रकाशित चार पुस्तिकाएँप्रात्मदर्शन (प्रथम भाग)-लेखक : श्री प्रो० पन्नालाल धर्मालङ्कार काव्यतीर्थ; पृष्ठ संख्या ८०, मूल्य : आठ आने ।
इसमें संवाद द्वारा णमोकारमन्त्र, सदाचार, धर्म, सप्तव्यसन, पाँच पाप आदि को परिष्कृत भाधुनिक भाषा में समझाया है । यह छात्रों के लिये विशेषोपयोगी है। चरित्र