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किरण २]
सम्पादकीय
सावन-सामग्री एकत्रित की थी तथा श्री जैन सिद्धान्त-भवन आरा से पुरानी पत्रिकाओं की फाइलें भी मंगवाई थी। इस विषय पर उक्त पंडितजी के दो-तीन फुटकर निबन्ध भी जैन सन्देश में प्रकाशित हुए थे; परन्तु अपनी उलझी हुई परिस्थितियों के कारण उन्होंने इस महत्वपूर्ण कार्य को बीच में ही छोड़ दिया ।
'जैन - सिद्धान्त-भास्कर' के परिवार ने इधर यह निर्णय किया है कि इस अर्धशतक में जितने प्रमुख समाज सेवक हुए हैं; जिन्होंने समाज में जीवन ज्योति प्रकाशित की है. उन व्यक्तियों के इतिवृत्त एवं सेवाओं के सम्बन्ध में विभिन्न दृष्टिकोणों से निवन्ध संकलित कर विशेषाङ्क प्रकाशित किये जाँय । अपने इस निर्णय के अनुसार 'भास्कर' की अगली किरण 'श्रीदेवकुमाराङ्क' नाम से जंन क्षितिज पर उदित होगी । स्वर्गीय दानवीर श्री बाबू देवकुमार जी का जन्म श्रारा नगर में चैत्र सुदी = सं० १६३३ में धनी-मानी, परिवार में हुआ था । आपके पिता का शुभ नाम श्रीमान् बाबू चन्द्रकुमार जी था और पितामह का नाम श्रीमान् पण्डित प्रभुदयालजी था । श्रीमान् बाबू देवकुमारजी रईस ने अपने जीवन काल में तन, मन, धन से जैनधर्म का प्रचार और प्रसार किया था। जन समाज की प्रगति का इतिहास आपके जीवन के साथ बहुत कुछ सम्बद्ध है। आपने जैन समाज में शिक्षा प्रसार, जागृति और उन्नति के अनेक कार्य किये हैं। आप अपने समय के प्रमुख नेता थे, जैन समाज का अपने जीवनकाल में आपने सच्चा पथ-प्रदर्शन किया है। जैनगजट के वर्षो सम्पादक आप रहे। आपने इस संस्था का अत्यधिक उन्नति की थी। तीर्थक्षेत्रों की सुरक्षा और सुव्यवस्था का सूत्रपात आपके ही द्वारा हुआ था । मन्दारगिरि जैन क्षेत्र को अन्य धर्मावलम्बियों के हाथ से निकालकर जैन समाज को सौंप देना आपका ही बुद्धिकौशल था ।
महासभा का नेतृत्व अपने ऊपर लेकर
जैन साहित्योद्धार की प्रवृत्ति के जन्मदाता आप ही हैं । यत्र-तत्र बिखरे हुए तथा ग्रन्थागारों में बन्द प्रकाश और धूप के अभाव में दीमक के पेट में जाते हुए ग्रन्थ-रत्नों की रक्षा और संचयन के लिये आपने जीवन के अन्त समय में उपदेश दिया था
"आप सब भाइयों से और विशेषतया जैन समाज के नेताओं से मेरी श्रमितम प्रार्थना यही है कि प्राचीन शास्त्रों और मन्दिरों और शिलालेखों की शीघ्रतर रक्षा होनी चाहिये; क्योंकि इन्हीं से संसार में जैनधर्म के महत्व का aftara रहेगा; मैं तो इस ही चिन्ता में था, किन्तु अचानक काल श्राकर मुझे लिये जा रहा है। मैंने यह प्रतिज्ञा की थी कि जबतक इस कार्य को पूरा न करूँगा, तबतक ब्रह्मचर्य का पालन करूँगा। बड़े शोक की बात है कि अपने अभोग्यदय से मुके
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