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सम्पादकीय
..en पर्यन्त अपने समस्त राज्य में जीवहिंसा निषेध, ग्वम्भात के तालाब में जलचर जीवों की रक्षा; शत्रञ्जयतीर्थ का कर मोचन और सर्वत्र गोरक्षा प्रचार आदि कार्य किये थे। जम्बूस्वामी चरित्त में कवि राजमल ने अकबर का वर्णन करते हुए लिखा है
मुमोन शुल्क त्वथ जेनियामिधं म या बदं भाधरभूधराधरम् । धगम नयः मरितापतेः श्यः यशः शशीश्रीमत्रकारस्य न।। वधेनगेतद्वचनं तदाररत न मिर्ग कापि निमर्गत श्वि (नश्चि ?) निः । अनेन नतमुदस्त गनमः मुधर्मगः: किल वर्ततेघना ।। प्रमादमादाय जनः प्रवर्तते कुधर्मवर्गप अतः प्रमनधीः ।।
तमोऽपि मद्यं तद वद्यकारण निवारयामास विदांव: स हि ॥ अर्थात- अकबर ने जैनधर्म से प्रभावित जजिया कर बन्द कर दिया था । हिंसक वचन उसके मुख से नहीं निकलते थे। हिंसा से बह यदा दर रहता था, गृत का भी उसने अपने राज्य में निषेध कर दिया था। मद्यपान का भी उसने निषेध कर दिया था, क्योंकि मादा पीने से वृद्धि भष्ट हो जाती है, जिससे व्यक्ति की कुमार्ग में प्रवृत्ति होती है। ___ श्री जैन सिद्धान्त-भवन के अंजनासुन्दरीरास को प्रशस्ति में श्री विद्याहर्ष सूरि ने लिखा है कि हीरविजयजी ने अकबर को प्रतियोधा था तथा श्री विजयसेन गणि ने अकबर के दरबार में भट्ट नामक विद्वान को वाद-विवाद द्वारा परास्त किया था । इसी कारण जैनधर्म से प्रभावित होकर अकबर ने अमारि घोपणा करायी थी। जैनधर्म के प्रभाव के कारण अकबर के हृदय में अहिंसा की निर्मल मन्दाकिनी प्रवाहित होती थी। श्री विजयसेन गगधरार रे ! विम्ला ।
ब्रिटिश शाहि अकबर नी सभा माहि गरे कीधी कधी वादु अभंग रे । मिथ्यामनरेपाडी करी रे निगि गठ्यु गव्य जिा राम नगरे । गाय नृपभ-महिपादिक जीवनी रे, कोची की नीरिय अमारे रे ।
यदि नकालह को गुरुवया थरे, द्रव्य श्रपत्र न दारि रे । अर्थान- अकबर ने जैनधर्म से प्रभावित होकर गाय, बैल, भस, बकरी आदि की हिमा का निषेध कर दिया था : अधर ने प्रसन्न कैदियों को छुटकारा दिया था तथा जैन गुरुओं के प्रति अपनी भाक्त प्रदर्शित की थी। दान, पुण्य के कार्यों
१-जम्बू स्वामी चरित २----हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास पृ० १०६