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किरण 1
कदम्ब नरेश रविवर्मा और उनका एक शिलालेख
माना जैसे स्वर्ग में इन्द्र माना जाता है। स्वयं लक्ष्मी ने ही उनका अभिषेक किया था। मीलोकुगड पर्वत ने रघु को धारण किया था। अब वही पर्वत रवि नरेश के श्रादेशां को मालावत धारणा करता है। हरिदत्त ने जब उस नरेश से दान करने की विनती की तो मुम्कुराहट की ज्योत्स्ना विखेरते हुए उन्होंने समुचित उत्तर दिया था। उनके वर्द्धमान शासनकाल के ३५ वें वर्ष में मधु (चैत्र) शुक्ल पक्ष की एक शुभ तिथि को जब रोहिणी नक्षत्र था, तब इन महाबाहु अपराजित नरेश ने अासन्दि नामक ग्राम सिद्वायतन पूजा के अर्थ और संघ की परिवृद्धि के लिये भेंट किया। उसके अतिरिक्त कोरमंगादि प्रदेश की कुछ भूमि भी प्रदान की, जिसका नाप तोल दिया है। रविनरेश ने यह दान अपने सामन्तों के समक्ष उंछादी गजकर से मुक्त करके दिया था। लोक के वे शासकगगा, जिनके मन कषायवासनों को जीतने में लगे हैं, इस दान की रक्षा करने के लिये उत्तरदायी होंगे, क्योंकि दान की रक्षा करने से महान् पुण्यफल एवं उसके नाश के पाप-फल से वे अवगत होगे। सगर आदि नरेशों द्वारा यह पृथ्वी भोगी जा चुकी है। जो कोई इसका शासक होगा उसे ही इस दान का फल मिलेगा। जो संकल्प कर के दिया गया अथवा तीन पीढ़ियों से जो भुक्तमान है या पूर्व राजाओं द्वारा प्रदत्त है वह दान कभी भी नहीं मिटाया जायगा। जो कोई दान की हुई भूमि जो जब्त करेगा वह साठ हजार वर्षों लकन में उबाला जायगा। आजकल अामन्दि ग्राम कर जिले के कदुर तालुके में अजापुर के पास स्थित है। यही ग्राम रविवर्मा नरेश ने जैनसंघ और सिद्धायतन को पूजा के लिये प्रहार किया था। सिद्धावान' संभवतः सिद्ध भगवान का बोधक है।