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किरण १ ]
एक सामायिक चित्रया
कवि ने मुद्रित 'कुमुदचन्द्र' नाम के एक सुन्दर नाटक की भी रचना की है, जिसमें घटनाओं का बहुत कर के वर्णन किया गया है ।"
मुनि जी का मत है कि ये चित्र उक्त घटना के ५-७ वर्ष के अन्दर ही सिद्धराज के समय में ही चित्रित किये गये हैं। आगे मुनि जी चित्रलेट (इ) का परिचय देते हुए
कहते हैं
:--
'इस चित्र में दिगम्बराचार्य कुमुदचन्द्र और श्वेताम्बर वादी देवसूरि की व्याख्यान सभा का दृश्य अंकित किया गया है। गुजरात के आशापल्ली स्थान पर, जिसे पीछे से कवी भी कहते थे, जुदे जुदे धर्मस्थानों में ये दोनों श्राचार्य एक साथ आकर टहरे थे। उन दोनों में प्रसंगवश विद्यास शुरु हुई। और वे दोनों अपने २ शिष्यों औरतों के आगे एक दूसरे के साकियों का खगडन मंडन करने लगे । इस चित्र में यदिरा की सभा का है। इसमें एक ऊँचे लकड़ी के आसन पर नग्न कर के दिगम्बराचाये बैठे हैं। उनके सामने उनके कोई मुख्य शिष्य तथा पीछे गृहस्थ बैठे हैं । याचार्य के पीछे उनके कोई चुल्लक शिष्य खड़े 1 उनकी पीवी है और हाथ में एक वस्त्र का टुकड़ा है । उसके द्वारा वह आचार्य को दवा कर रहे हैं याचार्य की मुद्रा उदेश प्रवण है। और उसका गाव खूब उत्तेजक है। श्रोतागण भी आर्य के कथन को उत्पाद और आवेग पूर्वक सुन रहे हैं।"
'इसके बाद देवर की व्याख्यान संगा का दृश्य है । यह भी ऊँचे लकड़ी के आसन पर श्वेत पढने बैठे हैं। इसने एक कोई और शिष्य बैठा है। उसके पास दो श्रावक बैठे हैं, एक लघु शिष्य पीछे खड़ा हुआ बसे थाचार्य को हवा कर रहा है । इन आचार्य की मुद्रा की वैगीड़ी उपदेश प्रवण और गावोतेजक है किन्तु उनके हस्तस्फालन में जरा अधिक मृदुता और मुख पर अधिक सौम्य भाव बतलाया है । इतना दृश्य तो दोनों आचार्यों का समान है। किन्तु देवमेन सरि की सभा में एक व्यक्ति खड़ा है जो उत्तेजनात्मक भाषण कर रहा है ऐसा होता है। इसमें लिखे हुए वाक्य से यह प्रकट होता है कि जो व्यक्ति खड़ा है यदिचार्य का आदमी है। और वह देवसूरि के आगे कोई वादात्मक से लगता हुआ सम्भाषण कर रहा है । यह आदमी
कहता है इसका सरस शाब्दिक चित्र सहित कुमुदचन्द्र नाटक के प्रथम अंक में दिया है, जिज्ञासुओं को वहाँ से जान लेना चाहिये, यहां देने का अवकाश नहीं है।
'चित्रप्ट (ई) -- दोनों आचार्यों में यह ठहराव हुआ कि उन्हें पाटन में सिद्धराज की राजसभा में शास्त्रार्थ करना चाहिये और अपनी अपनी विद्याशक्ति का परिचय देकर राजा से जय पराजय का प्रमाणपत्र लेना चाहिये । इस निर्णय के अनुसार दोनों आचार्य जब