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भास्कर
[भाग १७
में भी यह सदा अग्रेसर रहता था ।
ईसाई पादरो पिाहेरो ने लिखा है कि अकबर जैन नियमों पर अमल करता है। जैन विय से आत्म चिन्तन र यात्म आराधन में सदा संलग्न रहता है। माम, मदिरा और न की निषेध आज्ञा प्रचलित कर दी है। ___सम्राट् जहाँगीर ने राज्यारोहणा के पश्चात १२ आज्ञा प्रचलित की थी। इनकी ११ वीं प्राज्ञ के देखने से पता चलता है कि सम्राट अकबर जैन धर्म से कितना प्रभावित था। ___ "मेरे जन्म मास में, मारे राज्य में माला निषित रहेगा। वर्ष में एक-एक दिन इस प्रकार के रहेंगे, जिम में सभी प्रकार के पशुहत्या का निषेध है। मेरे राज्या भिषेक का अर्थात् गुम्बार और रविवार के दिन भी कोई मांसाहार नहीं करेगा ! क्योंकि मंसार का मृष्ट-मजन सम्मुशाया था. उस दिन किमी भी जन्तु का प्राण घात करना अन्याय है। मेरे पिता ने न्यारा यी अधिक समय तक इन नियमों का पालन किया है और हम ममय रविवार के दिन कहामि मांसाहार नहीं किया। अतः मैं भी अपने मध्य में उन दिनों में सायना का नियामक उद्घोषणा करता
जिन चन्द्रनर ने अवा को प्रतीक कराने के ये अकबर अनिबोध राम' नामक एक ग्रंथ लिखा है। अन्य से प्रकट कि अकबर ने अनेक अवसगे पर जैनपूजा करवायो थी। कहा जाना कि एक समय अकवर के पुत्र मलीम सुरत्राण के मूल नक्षत्र के प्रथम पाद में कन्या का जन्म हुआ। यातिभी लोगों ने कन्या के ग्रह पिता के लिये अनिष्टकारक, बतलाय नया उसका मुग्य भी देखने को निषेध किया। सम्राट अकबर ने शेग्य अबुल कल आदि विद्वानों को बुलाकर मूल नक्षत्र की शान्ति का उपाय पूछ। उसले पर हा नवाद न मंत्रीश्वर कन. चन्द्र को आदेश दिया कि जैनदशन के अनुमार इन दंप की उपशान्ति के लिये उचित प्रबन्ध शीघ्र किया जाय ।
सम्राट की श्राज्ञानुसार मन्त्रिवर कर्म चन्द्र ने सान, चादी के कलशों द्वारा चैत्र शुक्ला पूर्णिमा के दिन श्री पार्श्वनाथ भगवान का अभिषेक धमधाम से सम्पन्न किया। पूजन समात्र होने पर मंगल दीपक श्री आरतो के ममय सम्राट और उनके पुत्र अनेक दरवारियों के साथ वहाँ आये और दश हजार रुपये तिर मनर का भेंट किये। अभिषेक का गन्धोदक मसाट और उनके पुत्र ने अपने शरीर में लगाया था
१-युग प्रधान श्री जिनचन्द्रमूरि पृ० ११४