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किरण २]
सम्पादकीय
तथा इसे रनवास में रानियों के लिये भी भेजा गया। मूल नक्षत्र का समस्त दोष इस पूजा से दूर हुआ।
सम्राट अकबर ने गिरनार, शत्रुञ्जय, मथुरा श्रादि जैनतीर्थों की रक्षा के लिये अहमदाबाद के सूबेदार प्राजमखान को फरमान देकर भेजा था और उससे कहा था कि रतीर्थी, जैनमृतियों और जैनमन्दिरों को किसी भी प्रकार की हानि मेरे राज्य में कोई नहीं पहुंचा सकता है। जो मेरी इस आज्ञा का उलंघन करेगा, वह दण्ड का भागी होगा।
सम्राट अकबर जैन धर्म में पूर्ण प्रभावित था, इस बात को सुप्रसिद्ध इतिहासकार विसेन्ट , स्मिथ ने भी अपनी पुस्तक 'अकबर दी ग्रेट मुगल' में स्वीकार किया है।
'अकबर का लगभग पूर्णरूप से मांसाहार का परित्याग करना एवं अशोक के समान क्षुद्र से क्षुद्र जीव हिमा का निपेश करने के निये सख्त श्राजाओं का जारी करना, अपने जैन गुरुओं के सिद्धान्त के अनुसार श्राचरण करने ही के परिणाम थे। हिंसा करनेवालों को कड़ी सजा देना यह कार्य प्राचीन प्रसिद्ध बौद्ध और जैन सम्राटों के अनुमार था। इन आज्ञाओं से अकबर की प्रजा में बहुत लोगों को और विशेषतः मुसलमानों को बहुत कन्ट हुआ होगा।
स्मिथ सादव ने दसी पुस्तक में यह भी स्वीकार किया कि जैनधर्म से प्रभावित होने का कारण ही अकबर ने अपने अनि म जीवन में मांसाहार का त्याग कर दिया था।' अफवरी दरवार नामक पुस्तक से भी प्रतीन होता है कि करर पर अहिंसा की छाप अमिट थी। उसने स्वयं तो मामाहार का त्याग किया ही था, परन्तु अपने श्राश्रितों को भी मांसाहार का त्यागी बनाया था। विश्व इतिहास में भी अकबर के धार्मिक विचारों का विश्लेषण करते हुए उसे अध्यात्म प्रेमी, दयालु, परोपकारो और विशुद्धाहारी बताया है। जैनधर्म के प्रभाव के कारण ही उसमें आम गुण थे। बिना जैनधर्म के प्रभाव के दयालु और विशुद्धाहारी होना संभव नहीं है ।
श्री प्रो० ईश्वरी प्रमाद ने भी मुसलिम शासन के इतिहास का वर्णन करते हुए अकबर को जैनाचार्गो से पूर्ण प्रभावित बनलाया है। उन्होंने यह भी लिखा है कि सम्राट् का रहन-सहन बिल्कुल जैन नियमों के अनुकूल है। स्मिथ साहब ने अकबर की जन शिक्षाओं का वर्णन करते हए लिखा है
१-अकबर प्रतिबोध रास के आधार पर 'युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि' में उल्लखित १० ८५ २-अकबर दी ग्रेट युगल पृ० १६७ ३-उपयुक्त ग्रन्थ पृ० ३३५-३३६