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भास्कर
भाग १७
का सम्पादन सुन्दर हुआ है। यदि सम्पादक लिपिकर्ताओं की प्रशस्तियों के इतिहास के सम्बन्ध में कुछ और प्रकाश डालते तो इस प्रकाशन में चार-चाँद लग जाते। हम इस बहुमूल्य ऐतिहासिक संकलन के लिये उदीयमान प्रतिभाशाली सम्पादक तथा महावीरजी तीर्थक्षेत्र कमेटी को धन्यवाद देते हैं, जिनके प्रयास से प्रशस्तियों का यह संकलन प्रकाशित हुआ है। प्रत्येक अन्वेषक विद्वान और पुस्तकालय को हमें मंगाना चाहिये।
जैनधातु-प्रतिमालेख (प्रथम भाग)--- सम्पादकः मुनि कान्तिसागर; प्रकाशकः मंत्री, श्री जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार, सूरत ।।
प्रारम्भ में मुनिजी की एक छोटी सी प्रस्तावना है, जो अत्यन्त ज्ञानवर्द्धक है। आपने इसमें जैन धातु प्रतिमाओं के मंक्षिप्त इतिहास की रूपरेखा प्रस्तुत की है। इस संग्रह में संवत् १०८० से सं० १९५२ नक को धातु प्रतिमाओं के लोगों का संकलन किया गया है। इसमें कलकत्ता, बम्बई, अमरावती, भद्रावती, नासिक, बालापुर, नागपुर और सम्मेदशिखर श्रादि स्थानों की श्वेताम्बर जैन धातु प्रतिकात्री के ३६६ लेख संग्रहीत किये गये हैं। परिशिष्ट में हस्तलिखित एक गुट के के अाधार से सिद्धाचल की नव टोंक के प्रतिमा लेख भी अविकल रूप से दिये गये हैं। अन्न में लेखों में आये हुए श्राच 7. प्रतिष्ठायक मुनियों का नाम तथा गच्छ और नगरों के नाम भी दिये हैं, जिससे इस संकलन की उपयोगिता कई गुनी बढ़ गया है। मुनि जी पुरातत्त्व और कला के मर्मज्ञ विद्वान है, उनके द्वारा इसका सम्पादन सर्वाङ्गीण सुन्दर हुआ है। इतिहास-प्रेमियों को इससे लाभ उठाना चाहिये ।
नेमिचन्द्र शास्त्री भारत धर्म महामण्डल वर्धा के दो प्रकाशनसमाज और जीवन-- सम्पादकः जगनालाल जैन साहित्यरत्र; मूल्य एक रुपया।
विचारशील लेखों का यह संग्रह पर्याप्त सुन्दर बन पड़ा है। भाव और भाषा दोनों ही दृष्टियों से 'मुख और शान्ति' शीर्षक निबन्ध हमें बहुत रुचा है। गहन विषय का इतनी चलती भाषा में प्रतिपादन करना, महात्मा भगवानदोन जैसे कुशल कलाकार का ही चमत्कार है। वास्तव में हमलोग सुख-शान्ति नहीं चाहते, बल्कि उसकी बिडम्बना करते हैं । यों तो सभी निबन्ध प्रशंसनीय है, पर उदाहरण के लिये उपर्युक्त निबन्ध ही चुना है। राजमल ललवानी के निबन्ध भी हमारे जीवन की