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भास्कर
[भाग १७
निर्माण और धार्मिक ज्ञान कराने के लिये यह पुस्तक विशेष कर दियी गयी है, इससे एक अभाव की पूर्ति हो जाती है। लिखने का ढंग गया है। छात्र इस पुस्तक को बड़ी रुचि से पढ़ेंगे। ऐसी उपयोगी पुस्तक का पठन क्रम में शामिल होना लाभदायक होगा। छपाई सफाई भी अच्छी है. किन्तु प्रफ मंशोधन की असावधानी यत्र नत्र नजर आती है। जैसे--पृष्ठ -० में मोनगिन्ध, तद्गुनलब्धये आदि। द्वितीय संस्करण में भाषा को मान तथा पारिभाषिक शब्दों के बोझ को हल्का करना चाहिये। मात्म दर्शन नाम कुछ किलपा सा है. इसको भी बदलने की आवश्यकता है।
भक्तामर स्तोत्र सार्थ-- अनुवादक : श्री पं० अमृतन ल जी माहित्यदर्शनवार्य पृष्ठ संख्या ४+9-; मूल्य : छड आने । ___इसमें संस्कृत श्लोकों के नीचे गिन्दो पचानुवाद, अन्वय. शब्दार्थ और भावार्थ दिया गया है। प्रारम्भ में पं. कैलाश जी शास्त्री, प्रधानाध्यापक • श्री म्यादाद महाविद्यालय बनारस का प्राशयन है। जिसमें श्वेताम्बा परम्परा में प्रचलिन ४५
और दिगम्बर परम्पग में प्रचलित = पदों के रहस्यों को बतलाया है। श्री पं० अमृतलाल जी साहित्य व दर्शन के विद्वान ने इनका अनुवाद किया है। प्रत्येक श्लोक का विभक्ति के अनुसार अर्थ लिय गार नीने भावार्थ में विषय को स्पष्ट कर दिया गया है। श्री पं० अमृत लाल जी दर्शन व माहित्य के विद्वार है. उसकी इस विद्वाना को छाप इस अनुवाद पर स्पष्ट है। अब तक के प्रकाशित भ कामर के हिन्दी अनुवादों में यह निस्सन्देश प्रामाशिक अनुबाद। प्राचार्य मान तुग के दो श्रेल चित्रों मे प्रस्तुत संस्करण के अंरभी चित्ताकर्षक बना दिया है। यपि कला की दृष्टि से दोनों ही चित्रों में समचतुर संधान कारभार है। जंजीर में पकड़े हा चित्र में कुहनी से हाथ तक का भाग मम मुब पृष्ट में चित्र में भी हाथ जोड़ने की मुद्रा में अस्वाभाविकता है। फिर भी इम गुन्दर संस्करण के लिये प्रकाशक धन्यवाद के पात्र हैं।
दीपमालिका विधान-- सम्पादक : श्री प्रो. पन्नालाल धर्मालंकार काव्यतीर्थः पृष्ट संख्याः २ + १३ + ४-: मूल्यः श्राट श्रााने ।
इसमें स्तोत्र और दीपमालिका सम्पनी पजागों का मंकलन है। यद्यपि इसमें . मायंकालीन दीपमालिका के पर्व का संजिन विधान है, फिर भी यही लाते आदि की पूजा तथा अन्य तत्सम्बन्धी कार्यों को विशेष कियाओं का प्रभाव ग्वटकना है। हमें आश्चर्य इस बात का है कि किया-काण्ड के विशेष प्रोफेसर माहब ने नवीन बही खातों के संस्कार के सम्बन्ध में प्रकाश नहीं डाला, फिर भी सामान्य पाठकों के