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किरण २]
साहित्य-समीक्षा
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विकारों के आधीन रहता है, परतन्त्र है; जब उसकी प्रवृत्ति आत्मोन्मुख हो जाती है, वह स्वावलम्बी बन जाता है। रागादि का बिल्कुल शमन हो जाना प्रशम है, इससे बढ़कर अन्य कोई सुख और शान्ति नहीं है। जाव के लिये अशान्ति का कारण राग ही है। प्राचार्य ने इसके कई नाम बतलाये हैं। वास्तव में राग के अभाव में जो आनन्दानुभूति होती है, वह वर्णनातात है, शाश्वत है और परमोपादेय । इस प्रन्थ में इसी आनन्दानुभूति की प्राप्ति का उपाय बतलाया है।
अनुवाद प्रो० राजकमार जी साहित्याचाय ने बहुत ही सुन्दर किया है। हृदयंगम करने में विशेषार्थ तथा हरिभद्र नूरि की संस्कृत टीका का भाषानुवाद विषय समझने में बड़े सहायक हैं। इस सुन्दरतम अनुवाद के लिये उदीयमान लेखक साधुवादाद हैं। छपाई-सफाई अच्छा है। स्वाध्याय प्रेमियों को मंगाना चाहिये ।
न्यायावतार---रचयिताः प्राचाय सिद्धसेन दिवाकर; अनुवादकः पं० विजयमृत्ति शालावाय, एम.ए.मूल्यः पांच रुपये। ___ यह न्याय शास्त्र का ग्रन्थ है। इसमें प्रमाण, प्रमय का सुन्दर ढंग से विवेचन किया गया है। इसमें कुन्न २२ कारिक है। अनुवादक ने मूल कारिकाओं और सिद्धपिणि का संस्कृत टाका का भाषानुवाद किया है। न्याय शास्त्र के अनुवादक को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, इस कारण अनुवाद की भापा प्रायः उलझी रह जाता है। इस अन्य के अनुवाद में पर्याप्त भ्रम किया गया है, तथा भाषा की उलझन का बहुत कुछ अशों में दूर करने का प्रयास सफल रहा है। न्याय शास्त्र के जिज्ञासुओं क ालय ग्रन्थ उत्तम है। छपाइ सफाई, गेटप आदि अच्छे हैं।
प्रशस्ति संग्रह- सम्पादकः श्रा कल्लूर चन्द काललायाज एन० ए० शास्त्री; प्रकाशकः प्रबन्ध कारिण। कमेटा, श्री दि० जन अतिशय क्षेत्र महावार जा; मूल्य छः रुपये। __जैन इतिहास के निर्माण में अन्य प्रशस्तियाँ बड़ा उपयोगः हैं। दिगम्बर जैन समाज में एक प्रशस्तिसंग्रह जन-सिद्वान्त-भवन बारा से प्रकाशित हुआ था और दुसरा प्रशस्तिसंग्रह यह है। इसमें आये शास्त्र भंडार तथा जयपुर के संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी भाषा के ग्रन्थों को प्रशस्तियों का संकलन किया गया है। प्रस्तावना में सम्पादक ने अनेक ज्ञातव्य यानों के साथ प्रशस्ति संग्रह में आये हुए प्राचार्यों, लेखकों एवं कवियों का संक्षिा परिचय दिया है। इस प्रशस्ति संग्रह से कई नवीन ग्रन्थों का पता चलता है। अपभ्रंश भाषा का विपुल साहित्य अभी भप्रकाशित पड़ा है, इसके प्रकाशन को व्यवस्था शाम्र होनी चाहिये। प्रशस्तियों