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[ भाग ५७
उज्जैन से यहाँ आये थे और यहाँ से वेण्यातट नामक जल पट्टन को गये थे।" व जैनाचार्य कालक भी हिन्दुगदेश अर्थात् भारत से यहाँ आये थे । यहाँ के लोग भैंस के सींगों के सुन्दर हार बनाया करते थे और पनसफल से अनभिज्ञ थे । वारस्य का ही एक भाग पहल कहलाता था। जैनशात्रों में उल्लेख है कि तीर्थकर ऋषभदेव ने पल्लव में भी विहार किया और धर्मोपदेश दिया था। साथही यह भी उल्लेख है कि जब द्वारावती नगरी भस्म हो गई तब बलदेव के पुत्र कुञ्जराय पल्लव देश को गये थे। पहवों को आधुनिक विद्वान पार्श्वजन (Parthians) बताते हैं ।" एक समय पार्थीय (Parthians) लोग भारत में आये थे और उनमें से अनेक जैनधर्म में दीक्षित हो गये थे। मथुरा के कंकालीटी की खुदाई से जो जिनमूर्तियाँ मिली हैं उनमें से एक आखारिका नामक पाय महिलाद्वारा प्रतिष्ठित कराई गई थी। पारस्य के अवभनिशवंश के राजाओं में कम्बुजाय, कुरुस, धार्यरन आदि नामक कई राजा हुए थे। बजदेव पुत्र कुज्जया और कम्बुजाय का सार है । जो हो, यह निश्चित है कि ईरान से भारतीय जैनों का सम्बन्ध प्राचीन काल से था ।
भगवान महावीर के समय में मगध सम्राट् श्रेणिक विसार के पुत्र अभयकुमार के मित्र पारस्यदेश के राजकुमार आद्रकुमार थे 1 भ० महावीर का उपदेश सुनकर वह श्रमण मुर्ति हो गये थे और उन्होंने धर्म का प्रचार किया था । सम्राट् सम्प्रति मौर्य के विषय में हम लिख चुके हैं कि सम्प्रति ने अरब-ईरान आदि देशों में जैन मुनियों का बिहार कराकर धर्मप्रचार किया था। इनसे पहले सिकन्दर महान् अपने साथ भारत से कल्याण नामक दि० जैन श्रमण को ले गया था, जो ईरान के सुसा (Susa) नामक स्थान में स्वस्थ हुए 156
आधुनिक विद्वानों में मेजर जेनरल जे० जी० आर० फरलाना साथ ने भी अपनी
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भास्कर
1
Ibid, p. 321
२ निशीथ चूं ७ ० ४६ एवं चूर्णि पृ० २७-- - (lbid)
३
उत्तरा० २० २६-- lbid, p. 319
4 Geog: dictionary of Ancient & Med: India, Dey p. 134
५
भाडारकर वाल्यूम, पृष्ठ २३-२०
६ हिन्दी विश्वकप, भा० १३५० ३१६
७ संक्षिप्त जैन इतिहास, भा० २ खंड १ ० २१-२२
* Gymnosophists whom the Greeks found in Western India........ were Jains........ and that it was a company of Digambaras of this (Jain) sect that Alexander fell in with near Taxiles, one of whom Calanus followed him to Persia. - JRAS Jany 1855.