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farar - विषय
[ ले० श्रीयुत पं० गाववराम शास्त्री, न्यावतीर्थ ]
नेमिचन्द्रिका -
हिन्दी जैन कवियों में कवि मनरंगलाल का महत्वपूर्ण स्थान है। अपने चौवीसीपाठ, सप्तर्षिपूजा, सप्फयसनचरित्र, नेमिचन्द्रिका और शिखिर सम्मेाचलमाहात्म्य आदि ग्रन्थों का निर्माण हिन्दी भाषा में किया है। श्री जैन सिद्धान्त भवन धारा के हस्तलिखित ग्रन्थागार में सं० २०६५ की लिखी हुई 'नेमिचन्द्रिका' की एक प्रति उपलब्ध हुई हैं । इस प्रति के लिपिकार श्री रघुनाथ द्विज़ हैं, तथा यह प्रतिलिपि पहनपुर में की गयी है । नेमिचन्द्रिका पद्यबद्ध रचना है, इसमें ४= ६
है।
यह एक खण्डकाव्य है । कविने इसमें दोहा, चौपई, भुजंगप्रयात, नाराच, सोरठा, अडिल्ल, गीता, छप्पय, घोटक, पद्धरी आदि छन्दों का प्रयोग किया है । पिंगलशास्त्र की दृष्टि से इनके सभी छन्द प्रायः शुद्ध हैं, गणदोष, पददोष, वाक्यदोष, यतिभंग आदि का अभाव है। एकाव स्थल पर लिपिकार को असावधानी के कारण छन्दोभंग प्रतीत भी होता है; परन्तु कवि ने वास्तव में यह त्रुटि नहीं को है ।
इसकी भाषा कन्नौजी से प्रभावित खड़ी बोली है । यों तो भाषा में कोमलकान्त पदावली का प्रयोग सर्वत्र पाया जाता है । सानुप्रास, प्रसादगुण से अलंकृत एवं परिष्कृतपना इनकी भाषा के विशेष गुण हैं। करुणरस के वर्णन में शब्द स्वयं करुणा का मूर्तिमानरूप लेकर प्रस्तुत हुए हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो स्वयं करुणा ही शब्दों का रूप धारण कर प्रादुर्भूत हुई है । प्रसंगानुसार भाषा का स्वरूप परिवर्तित होना इनकी विशेषता है।
कविने अपने कलापक्ष को पुष्ट करने के लिये अलंकारों का भी सुन्दर ढंग से प्रयोग किया है। इसमें शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों का ही प्रयोग पाया जाता है । शब्दालंकारों में प्रधानतः अनुप्रास, यमक आदि और अर्थालंकारों में उत्प्रेक्षा', रूपक, उपमा', आदि विशेष रूप से प्रयुक्त हुए हैं।
प्रेम
१ यहाँ और को काको रक्षे, निज कन्धा धरि धीर ।
२ दुःख सों भरी देह घट छुटा । जनु वरषत प्रति दीश्व छटा ।
३ बालचन्द्र जिमि कुवर वपु, बदल महा सुख कंद ।