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भास्कर
[भाग १७
विस्तार से प्रभावोसादक वर्णन किया गया है। व्यन्तर देवों के वर्णन में आकाशो. सन्ना, प्रीतिङ्करा, भुजगा, महागंधा, गंधाका, अनुत्पन्ना, उत्पन्ना, कुसुमाएड, अन्त
सिन, दिग्वासिन, नित्योत्पादक आदि भेदों का बड़े ही विस्तार के साथ वर्णन किया है। जोतिर्लोक व्यावर्णन में ज्योतिषियों के विमान, बिम्ब प्रादि का पायाम, विस्तार
और स्थूलता प्रभृति बातों का विस्तार से विवेचन किया गया है। आगे चलकर भरत, हिमवत्. हैमवत, महाहिमवत् , हरिवर्ष, निषध, विदेह, नील, रम्यक, रुक्मी, हैरण्यवत, शिखरो और ऐरावत क्षेत्र की ताराओं का अंकसंदृष्टि द्वारा विवेचन किया गया है। सूर्य और चन्द्रमा के प्रकाश और प्रभाव का गणित भी जानकारी के लिये उत्तम है। इनकी शीघ्र, मन्द और मध्य गतियों का विवेचन भी ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से ज्ञान बर्द्धक है। कृतिका से नक्षत्र गणना कर नक्षत्रों की ताराओं और उनकी
आयु आदि का कथन भी जानकारी बढ़ाने वाला है। ऊर्ध्वलोक व्यावर्णन में सोलह स्वर्गों का गणित पूर्वक विस्तार से वर्णन किया है। इन्द्रक, श्रेणीबद्ध, प्रकीर्णक विमानों का सचित्र वर्णन करते हुए इनके आयाम आदि सगणित बतलाये गये हैं। इस प्रकरण में जानकारी के लिये अनेक बातें हैं।
इस प्रकार यह ग्रन्थ करणानुयोग का अनूठा है। प्रकाशन संस्थाओं को ऐसे महत्वपूर्ण ग्रन्थों के प्रकाशन की ओर ध्यान देना चाहिये । इस प्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषिता संदृष्टियों की है। समग्र ग्रन्थ में लगभग १५० संदृष्टियाँ हैं ।