________________
किरण २]
विविध-विपय
१२४
कवि परिचय---
ग्रन्थान्त में रचयिता ने स्वयं ग्रन्थ रचने के कारगों का विशो परण करते हुए अपना परिचय दिया है, जिमसे उनके जीवन पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है ।
श्रय मन भित्र बनाय यकी विधि यीन विध निको भयो । शुभ दे अन्तर चंद मजद, कान कुज्य भलो यो ।। ता वो श्रावक त्रिकाल नि पद प्रदी। लागि मात्र मर मिह परस्पर प्रासद मा नाही । तहाँ पलिलवार इस्य कशी नशिव यः । जिनदेव शास्त्रमिलान्त मन जिये. या दिया । शन कर चरचा र निज द. मा जानिके। तिन मनि मद इक बात सायक काम है; बदनिकै ।। हुन समय नुनम दिन का मन जन टार के। तिनके जुगल नुन मन मार लिई सय अरपरि के ।। शुभ कन्ट लान की गरिराम नाम कनिष्ट को। तिन मिशन मा नो मरंग माल नाम कह सवै । तिन लाल तनरंग के गुलदस नारे तये ।। सोपान हे ते अतिष्ट्रि बना सकल गुन की खानि जी। जिन भक्ति शास्त्र जिनेशलनने कन करत मान जातिजो॥ न हि रहन न वाकाट निनके शोध करने ना लखो। निति देवि जैनी निधनधाम युधा चय।। इत्यादि बदगुग नुत लु पाल नंद तनो सदा । इक तीसरी नियमत रहत निशदिन पलक बिछुरत ना कदा॥ तिनके ही हम सो बात या विधि मित्र सूनुचित ल्याय के। शुभ नेम चन्द्र कि चन्द्रका अब हमारे देतु अनाय के ॥ तिन वचन मित्र समान अतिप्रिय मुने अानन्द सो गरे । अनु जलधि वरण सुधा वदन खेत सूदन को खरे॥ तब शुभ विनार नितान रित सो छन्द नह नाना धरे । तिन न द६ शुभ लेश कीन्हा नुनत संकट की दरे ॥ इह रहो जग बल गु विदित बल गुन कनक को भूधरा । नभ उदधि जब लग रही भूतल नन्द अवर दिवाकरा ॥