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किरण २
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विविध विषयं
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निर्माण संस्कृत भाषा में रामसेन ने किया है। पं० दौलतराम ने इसका अनुवाद हिन्दी भाषा में किया तथा कथाओं को शृंखलाबद्ध भी। इस बचनिका को पद्यबद्ध करने की इच्छा भावसिंह नामक कवि को हुई। इन्होंने चौपई आदि छन्दों में इस बचनिका को बाँधने का पूर्ण प्रयत्न किया। आयु का अन्त और काल की विचित्रता ने इनके इस कार्य में विघ्न पैदा किया, जिससे इस कार्य को पूर्ण करने में असमर्थ रहे; केवल शीलाधिकार तक ही इस ग्रन्थ को लिख सके। इस अधरे ग्रन्थ के पुण्य के प्रताप से भैरोसिंह को दर्शन हुए। भैरोसिंह के मन में इसको पूर्ण कराने की उत्कृट इच्छा उत्पन्न हुई। समय का फेर और भैरोसिंह के तात्र शुभ कर्मोदय से इन्हें इस ग्रन्थ के पूर्ण कराने के साधन शीघ्र प्राप्त हो गये। इन्होंने जियराम नामक कवि को इस ग्रन्थ के पूर्ण करने का भार सौंपा। कवि ने इस ग्रन्थ को चैत्र सुदी २ मं० १७६२ के शुभ दिन में पूर्ण किया।
पुन्याला यह कया रिमाल । पृजादिक अधिकार विशाल || 'पट अधिकार परम उत्कृष्ट । कपन कथा जास में मीष्ट ।। आदिपुरागादिक ने कहा। अभिप्राय तसु याम लहा ।। आचारज जिव धरि अमिलाप। कोनो तास संस्कृत भाप । तास बनिका रूप सुधार । दौलतराम कथा बुधसार ।। तातै भावांसह निज छन्द । अरंभ किया चौपई बन्द ।। शील अधिकार गाई उन जोड़। भेज दिया लिख ना हम प्रोड़ ॥ भला कथा हम लम्बि के लियो। ताक काल मावसिंह भयो । मगंदास पुन्य पाकास। देखा ग्रन्थ अपंग पास ॥ मी से भणा सम्पूर्ण करो। भारत का नम नमैं धरी !! मैं भाषा भापू मुवमान । ज्यों कर लगै सम्पूर्ण पुराण ॥ तब उन कछुक सम में खोज । मा पं भेज दिया ले क्षाम ।
॥दोहा॥ गयौ कर्म संजोग तें, पर सेवा में लीन । जा छिन थिरता चित गही, वित जुत रचना कीन ।। ग्रन्थ बड़ा मी मति अल्प, ऐसा बना नियोग । हास निवारसु सोधियो, विनउ पंडित लोग ।।