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किरण २]
जैन सिक्के
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एक ओर 'पाहिमिहिरकुल' लिखा है। दूसरी ओर सिंहासन पर पद्मावती की मूर्ति है । । मिहिरकुका के ये सिक्के तोरमाण के सिक्कों पर बने हुए हैं । हमारा अनुमान है कि यह तोर मारण जैनाचार्य हरिगुप्त का प्रशिष्य और देवगुप्त का शिष्य था' । यही कारण है कि मिहिरकुल के सिक्कों में जैनधर्म की भावना अंकित की गयी है।
उत्तरापथ के मध्ययुगीन सिक्कों में उद्भाण्डपुर में शाही राजवंश के पाँच राजाओं के सिक मिले हैं। पहले प्रकार के सिक्कों पर एक ओर वृषभ और दूसरी ओर घुरमवार की मूलि है। दूसरे प्रकार के सिक्कों पर एक ओर हाथी और दूसरी ओर सिंह की मूनि है' । तीसरे प्रकार के सिक्कों पर एक ओर सिंह और दूसरी और मयर को मुनि। हाथी और सिंह की मूर्तिवाले सिकाों पर 'श्रीपदम', 'अं वकदेव' और श्रीसामनदेव' नाम मिले हैं। हाथो और सिंह की मूर्तिवाले सिक्के निश्चय जैन हैं। इन मि पर जैन भावना का प्रभाव है । ___ गुजरात में कुमार और अजयपाल के सिक्के अधिक संख्या में मिले हैं । ये चालुक्यवंशी राजा थे । ग्वालियर राज्य में अजयपाल के राज्यकाल को वि. मं० १.२६ का खुदा हुया एक शिला लेश मिला है । इमी जगह कुमारपाल के राज्यकाल में वि० सं० १२२० का एक शिनाले व ग्वुड़ा है। इसका अन्य शिलालेख मेवाड़ राज्य के चित्तौर में वि० सं० १२०७ का खुदा हुआ मिला है । कुमारपाल का अजयपाल पुत्र था । मारपाल ने प्राचार्य हेमचन्द्र से जैन धर्म की दीक्षा ली थी। इगने जैनधर्म के प्रचार के लिये अनेक प्रयास किये थे। शत्रुजय और गिरनार की यात्रा के लिये संघ निकालकर संघपप्ति की उपाधि ग्रहण की थी और अनेक जैन मन्दिर भी बनवाये थे ।
I Indian Museum crips Vol 1, P. 337 Nos 1. 2 Inrlian Coins P. 30 ३ जैन माहित्यको इतिहास ० १३२ 4 Indian Museurn Coins Vol. 1, P. 243, 246-248, Nos 1-15 5 Indian Coins P. 31 ६ संक्षिप्त जैन इतिहास द्वितीय भाग, द्वितीय खंड पृ. १२६ 7 Indian Antiquary Vol. XVIII, P. 347 8 Epigraphia Indica, Vol. II P. 422 9 Epigraphia Indica, Vol. VIII, App. I p. 14 १० बम्बई प्रान्त के जैन स्मारक पृ० २१० तथा संक्षिप्त जैन इतिहास द्वि० भा० खं० २