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भास्कर
(भाग १७
का पालन करते थे उनके सिक्कों में वराह अवतार अथवा लक्ष्मी की मृत्ति मिलती है। जैन राजाओं ने अपनी धर्मभावा की अभिव्यक्ति के लिये कमल को प्रतीक चुना था। ___ यादव वंशी राजाओं के राज्य देवगिरि और ने दूर के द्वार समुद्र नामक स्थान में थे। देवगिरि में राज्य करनेवाले राजानी के सं ने, चाँदी भगीर तांबे के सिक्के मिले हैं, परन्तु इन सभी सिक्कों पर हिन्दु धार्मिक भावना का प्रकिगर अंकित किया गया है। ___ मैसूर के द्वारसमुद्र नामक स्थान में भी ना रातो के गाने और नॉवे के सिक्के मिले हैं। सोने के सिकको पर कोरपाको मनि मोर दूलरी और कन्नड़ लेख है। ताँबे के सिक्कों पर एक और हथीन मुनि और दाम और कन्नड़ लेख है। । इस स्थान के बाद सभी मान सिक्कों पर नाम के बदले में उपाधि मिलती है; जैसे- श्रीव नकाई गगड अधीन नलका विजयी। उपयुक द्वारसमुद्र से प्राप्त सिक्के जैन है क्योंकि इनमें जन प्रतीकों का व्यवहार किया गया है।
बरंगल के काकतीय वंश के राजाओं के सीने मारो कसिक मिले है। इन पर एक और वृषभ का चिन्द है और जोर कन्नड़ अथवा तेलगू भाषा का लेख है । ये सिक्क भी जैन हैं।
दक्षिणापथ में पारड्य, चर, राष्ट्रकूट, गंग प्रादि काई वंश के राजा कानुयायी थे। इन्होंने १२ वी, १३ थीं नीर १४ वीं शाना में मुद्रा प्रचलित को यां। इन राजाओं की मुद्राओं पर भी जैन प्रतीक मिलते हैं। वास्तव में दक्षिणापथ में जैनधर्म का प्रचार कई शताब्दियों तक जोर से रहा है। इस यम ने राजाश्रय कर अपनी उन्नति की थी। अनेक राजाओं ने जैन गुरुयों को दान दिये थे।
मिहिर कुल के प्राप्त सिक्कों में दो प्रकार के नांव के सिक्के प्रधान है। पहले प्रकार के सिक्कों पर एक और राजा का मानक और उसके मुंह के पास 'श्रीमिहिर कुल; अथवा 'श्रीमिहिरगुल' लिखा है। दूसरी ओर ऊपर खड़े हुर वृषभ की मूर्ति है और उसके नीचे 'जयतु वृष' लिया है । ये पहले प्रकार के सिक्के जैन है। - द्वितीय प्रकार के सिक्कों पर एक और बड़े हुए राजा की मूर्ति और उसके बगल में
| Elliott's South Indian Coins p. 152, Nos 87-891; 90-91 2 प्राचीन मुद्रा २२६; South Indian coins p. 152 Nos 93.95 3 Indian Museum Coins Vol. 1, P. 337 Nos l.