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[ भाग १७
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नदी के बीच के प्रदेश में दो प्रकार के सिक्के प्राप्त हुए हैं। ये दोनों प्रकार के सिक्क पुडुमावि, चन्द्रशाति, श्रीयज्ञ और श्रीरुद्र आदि राजाओं ने प्रचलित किये थे। पहले प्रकार के सिक्कों पर एक ओर सुमेरु पर्वत और दूसरी ओर उज्जयिनी नगरी का चिह्न है । इन सिक्कों के निर्माता वाशिष्ठी पुत्र श्री पुडुमावि, वाशिष्ठी पुत्र श्रीशात करिण वाशिष्ठी पुत्र श्री चन्द्रशाति, गोतमीपुत्र श्रीयज्ञशातकर्णि और रुद्रशातकर्णि हैं ।
भास्कर
दूसरी प्रकार के सिक्के पर एक ओर घोड़ा, हाथी अथवा दोनों की मूर्तियाँ तथा दूसरी ओर सिंह को मूर्ति है । ये सिक्क े श्रोचन्द्रशाति, गोतमीपुत्र श्रीयज्ञशातकरिंग और श्रीरुद्राशातरि के हैं। निश्चय ही ये दोनों प्रकार के सिक्के जैन हैं; क्योंकि इनमें जैन प्रतीकों का व्यवहार किया गया है ।
मालव में आन्ध्र राजवंश के कुछ पुराने सिक्के मिले हैं । स्वर्गीय पंडित भगवानलाल इन्द्रजी ने अपने एकत्रित किये हुए सिक्के लन्दन के ब्रिटिश म्यूजियम को प्रदान किये हैं । इन सिक्कों में दो प्रकार के सिक्के मिलते हैं । इन पर अंकित लेख का जो अंश पढ़ा गया है, उससे पता चलता है कि ये सिक्के श्रान्त्र राजाओं के ही हैं। पहले प्रकार के सिक्के ईरान के पुराने सिक्कों के ही समान हैं । afaar ने लिखा है कि इस प्रकार के सिक्के पुरानी विदिशा नगरी (बेसनगर ) के खंडहरों में बेस तथा बेतवा नदी के बीच मिले हैं। इसी कारण रॅप्सन ने अनुमान किया है कि ये सभी सिक्के पूर्व मालव के हैं। इन सिक्कों को चार विभागों में बाँटा जा सकता है। पहले विभाग के सिक्के पोटिन के बने हैं, इन पर एक ओर घेरे में बोधिवृक्ष, उज्जयिनी नगरी का चिन्ह, वृषभ और सूर्य चिन्ह अंकित हैं । दूसरी ओर हाथी और स्वस्तिक चिन्ह हैं । दूसरे विभाग के सिक्के ताँबे के हैं; इन पर एक ओर हाथी की मूर्ति और दूसरी ओर घेरे में बोधिवृक्ष (अशोक वृक्ष) और उज्जयिनी नगरी के चिन्ह हैं। तीसरे विभाग के सिक्कों पर पहली ओर सिंह
| Rapson, Catalogue of Indian Coins Andhras, W. Khatrapas I XXII
etc. P.
2 Rapson, Catalogue of Indian Coins Andhras, W. Khatrapas, etc. p. I XXIV; प्राचीन मुद्रा पृ० २१४
3 Journal of the Bombay Branch of the Royal Asiatic Society Vol. XIII, 10.311
4 Rapson, British Museum Coins P. XCVI.
5 Cunnigham's Coins of Ancient India, p. 99
6 Rapson, British Museum Coins P. 3, Nos 5-6-7-9-9-11