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भास्कर
[ भाग १७
के सिक्के सबसे प्राचीन हैं, और ये ही सिक्के जंन हैं। इन सिक्कों पर एक ओर वृषभ
और स्तम्भ एवं दूसरी ओर हाथी और वृषभ हैं। पहली और ब्राह्मी अक्षरों में "यधेयन (योधेयानां)" लिखा है । । शेष दो विभाग के सिक्कों पर जैन प्रतीक नहीं हैं। इसका कारण यही प्रतीत होता है कि यौधेय जाति के राजा पहले जैनधर्म पालते थे, पीछे भागवत धर्म में दीक्षित हो गये थे; क्योंकि दिनीय और तृनीय विभाग के सिक्कों में भागवन् धर्म की भावना अंकित है। ___यद्यपि गुतवंश के कई राजा जैनधर्म के श्रद्धालु थे, परन्तु इस वंश के प्राप्त सिक्कों में जैन प्रतीकों का प्रायः अभाव है। इसका प्रधान कारण यही है कि गुप्रवंश के राजा कट्टर ब्राह्मण धर्मानुयायी थे, इसलिये उन्होंने अपनी धर्म भावना की अभिव्यक्ति के लिये ब्राह्मण धर्म के प्रतीकों को ही ग्रहण किया है। यद्यपि जैन इतिहास में ऐसे अनेक उन्लेख वनेमान हैं. जिनसे गुमकालीन जैन माहित्य और जैनधर्म की पर्याप्र उन्नति प्रकट होती है। असल बात यह है कि ब्रामण धर्मानुयायी होते हुए भी गुपवंश के राजाओं ने सभी धर्मों को प्रश्रय दिया था।
ईस्वी सन् की पहली शताब्दी में मानव और मांगट में महाक्षत्रप उपाधिधारी शक राजाओं ने राज्य स्थापित किया था। इस प्राधिधारी राजारों में दो वंश के राजाओं का प्रभुन्य प्रधान रूप से मांगट पर. रहा है। पहले राजवंश के कुषण साम्राज्य स्थापित होने से पहले और दूसरे राज्यवंश ने कुपण राजवंश के माम्राज्य के नष्ट होने के समय सौराष्ट्र पर अधिकार किया था। प्रथम राजवंश में केवल दो राजाओं के सिक्के मिलते हैं। पहने राजा का नाम भूमक था। इसके दो ताँबे के सिक्के उपलव्य हुए हैं, उन पर एक पोर सिंह को मुनि. दुमरी ओर चक्र तथा एक ओर खरोष्ठो अक्षरों में "बहरदास छत्रपस भुमकम' और दूसरी ओर ब्राह्मी अक्षरों में जयरातस क्षत्रपस भूमकस" लिम्बा है । ___ उपर्युक्त सिक्कों में जैन प्रतीक अंकित हैं, अतएव या मानना असंगत नहीं कहा जा सकता है कि भूमिकस जैन था। इस राजा का उत्तराधिकारी क्षत्रप नहपान बताया गया है। जिनसेनाचार्य ने इसका उल्लेख नरवाह नाम से किया है, इसका राज्यकाल ४२ वर्ष लिया है। अनुमानतः यह ई० पू० ५८ में राज्याधिरूढ़
१ राखालादास वन्द्योपाध्याय की प्राचीन मुद्रा पृ० १४६; Rodgers Catalogue of Coins, Lahore museum.
2 Rapson, Catalogue of India Coins in the British museum, Andhras, Western Ksatrapas etc. pp. 63-64, No: 237-42