________________
११४
[भाग १७
ओर हाथी, घेरे में बोधि वृक्ष और नीचे एक साँप है। दूसरी ओर दो तल्ला या तीन तल्ला मन्दिर स्तम्भ के ऊपर स्वस्तिक और धर्मचक्र हैं !
निश्चय ही ये पहली प्रकार के सिक्के किसी जैन धर्मानुयायी उदम्बर जाति के राजा के हैं। इन मुद्राओं में अंकित धर्म भावना जैनधर्म की है। हाथी द्वितीय तीर्थकर का लाञ्छन और बोधि वृक्ष केवलज्ञान प्राप्त करने का संकेत है अथवा भगवान के आठ प्रतिहार्यों में से पहला प्रातिहार्य है। नीचे साँप अंकित है, वह तेईसवें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ का चिह्न है। अतः मुद्रा की प्रथम पीठिका जैन संकेतों से युक्त है। दूसरी पीठिका में जो मन्दिर स्तम्भ के उपर स्वस्तिक और धर्मचक्र बताये गये हैं, वे भी जैन प्रतीक हैं। मन्दिर के स्तम्भ के ऊपर स्वस्तिक और धर्मचक्र अंकित करने की प्रणाली आज भी जहाँ-जहाँ पायी जाती है। स्वस्तिक को जैनधर्म में मंगलकारी माना गया है, कहीं-कहीं स्याद्वाद दर्शन का प्रतिक भी स्वस्तिक को माना है। जो व्यक्ति इसे स्याद्वाद दर्शन का प्रतीक मानते हैं, वे इसका अर्थ सु= समस्त, अस्ति = स्थिति, क = प्रकट करनेवाला अर्थात् समस्त संसार को समस्त वस्तुओं को वास्तविक स्थिति प्रकट करने की सामथ्यं स्यावाद दर्शन में है, अत' स्वस्तिक स्याद्वाद दर्शन का प्रतीक है। प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों में अन्य प्रारम्भ के पहले स्वस्तिक चिह्न तथा ग्रन्थ समाप्त करने पर भी स्वस्तिक चिह्न मंगल-सूचक होने के कारण दिया गया है। __ स्वस्तिक में जैन मान्यतानुसार जीवन की भी अभिव्यञ्जना वर्तमान है। स्वस्तिक के किनारेदार चारों छोर चार गतियों के प्रतीक हैं। जीव अधर्म-स्वभाव बहिर्मुख होने के कारण नरक, तिर्यच, मनुष्य और देव गतियों में परिभ्रमण करता है, जब यह धर्म-स्वस्वभाव में स्थिर हो जाता है तो प्रभु बन जाता है। धर्म स्वभाव का द्योतक स्वस्तिक में मध्य केन्द्र बिन्दु माना है और अधर्म का द्योतक मध्य बिन्दु से हटकर कोई भी स्थान है, जो बन्ध का कारण है। जैनमान्यता में स्वस्तिक को प्रत्येक
I Journal of Proceedings of the Asiatic society of Bengal, VolX. Numismatic supplement, No XXIII P., 247. Coins of Ancient India P.68 २ उच्चैरशोकतरुसंश्रितमुन्मयूख
माभाति रूपममलं भवतो नितान्तम् । स्पष्टोल्लसत्किरणमस्ततमोवितानं
चिम्बं रवेरिव पयोधरपार्श्ववर्ति ॥-भकामर स्तोत्र पय सं० २८