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किरण २ ]
अरब, अफगानिस्तान और ईरान में जैनधर्म
उसके भय से जैनी भारत चले आये होंगे। दक्षिण भारत के राजवंशों और संघों एक का नाम 'यवनिका' वा 'यमनिका' मिलता है। इस वंश के राजा मक्का गये थे ।" संभव है कि यह जेनी अरव के 'मन' प्रदेश के रहनेवाले होंगे, जो भारत आने पर अपने देश के नाम से प्रसिद्ध हुये । नामिल भाषा के प्राचीन ग्रंथों में व मुसलमानों के लिए 'सोनिक' ( Sonaka) शब्द का प्रयोग हुआ है; किन्तु साथ ही साथ जैनों को भी सोनक लिखा है। इसका कारण यही है कि अरबवासी लोगों में जैनों की संख्या पर्यात थी । इस प्रकार साहित्यक लेखों से अरब में जैनधर्म का प्रचलित होना सिद्ध है । पारस्य अथवा ईरान
में
आजकल जिस देश को ईरान कहा है, प्राचीन काल में वह एरान और पारस्य नाम से प्रख्यात था। व्यार्य लोगों का वासस्थान होने के कारण वह प्रदेश आना (Ariana) कहलाना था, जिसका अपभ्रंश एरान हुआ। उपरान्त आज से लगभग ५०० वर्षो पहले से प्रशन को वहाँ के लोग ईरानी कहने लगे। ईरान प्रदेश में बहुत पहले एक नगर परस (Persis) नामक था। वहां के राजा अमनीय (Achaeme nian) ने आकर एक साम्राज्य स्थापित किया था। इस कारण सारा प्रदेश 'पारस्य' नाम से प्रसिद्ध हो गया था। वेरोनस (mous) नामक इतिहासवने लिखा है। कि ईसा के जन्म से प्रायः दो हजार वर्षो पहले मिस (स) जाति ने बालिन पर अधिकार किया और उसके बाद राजाओं ने यहाँ २२ वर्षो तक राज्य किया था । उपरान्त यहाँ युगनियों का शासन हुआ, जिसके उत्तराधिकारी पार्थीयन हुये । अन्त में यह राज्य खलीफाओं के अधिकार में पहुंचा था। आजकल भी ईरान में मुसलमानों का स्वतंत्र राज्य है । "
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जैनों को पारस्य का पता प्राचीन काल से था। 'प्रश्नव्याकरण' सूत्र ग्रंथ में इसकी गणना अव के साथ की गई है। भारतीय व्यापार के लिए यह देश एक प्रमुख केन्द्र था, जहाँ दूर-दूर के व्यापारी आया करते थे । जैन वणिक अयल १ मद्रास मैसूर प्राचीन जैन स्मारक प० ७० ६० तथा संक्षिप्त जैन इतिहास, भा० २ खंड २ पृ० १६३
२ यह बात हमको तामिल विद्वान् प्रो० वी० जी० नायर ने बताई है। वह इस पर एक लेख लिख रहे हैं ।
३ हिन्दी विश्वकोष भा० १३ पृ० ३१५-३२६
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प्रभव्याकरण सूत्र (हैदराबाद संस्करण) पृ० २४
श्रावश्यक चूर्णि पृ० ४४८ - Life in Ancient India, p. 320