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तौल के जैन पायगार - नरेश
किरण २]
पीछे विजयनगर आदि निकटवर्ती श्रन्यान्य प्रवल राजाओं के श्राश्रित हुए । अखंड जैन इतिहास के निर्माण के लिये इन जैन पायगारों अर्थात् छोटे छोटे रियासतदारों के इतिवृत्त को संग्रह करना भी परमावश्यक है। हाँ, यहाँ पर इतना तो निस्संकोच कहा जा सकता है कि स्वतन्त्र हो या श्राश्रित उस समय के ये सभी शासक धर्म, शिल्प और साहित्य आदि के अनन्य पोषक थे । यद्यपि विवर्धन या विष्णुवर्धन के जैनवर्स को त्याग कर वैष्णव धर्म में दीक्षित होने से एवं लिंगायत (शैव ) धर्म के जन्म से मैसूर तथा अन्य कर्णाटक के जैनों पर उस समय बड़ी सुमीता गयी थी । ऐसी अवस्था में तौल में उन्हें समुचित श्राश्रय मिला और वहाँ के धर्मप्रेमी जैन शासकों के प्रभाव से जैन धर्म की भी श्रीवृद्धि हुई ।
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विजयनगर के राज्यकाल में भी तौलन में जैव की अभिवृद्धि में किसी प्रकार का विघ्न नहीं श्राया; क्योंकि विजयनगर के शासक जैनधर्म के विरोधी नहीं थे; प्रत्युत सहायक रहे । हाँ, ई ३० सन सोलहवीं शताब्दी के मध्यभाग में इ+फेरि के शैव धर्मानुयायी धर्मान्मत्त शासकों के द्वारा जैनधर्म की आशातीत क्षति पहुँची । इन व शासकों में और शिवप्पनायक
के नामों की जैन समाज कभी नहीं भूल सकता । तौलव में जैनधर्म को समूल नष्ट करने के लिये उपर्युक्त शासकों ने कुछ भी उठा नहीं रखा था । किन्तु इसमें उन्हें पूर्ण सफलता नहीं मिल गयी । खासकर वैभाशाली प्राचीन जैन राजधानी वारकर में इन शासकों ने बड़ा अत्याचार किया था।
डा० सातोर की राय से ई० सन् ६ वीं शताब्दी से ११ वीं शताब्दी तक अर्थात् लगभग तीन शताब्दियों में तौलन में जैनधर्म का प्रभाव विशेषरूप से रहा । आज भी इसके ज्वलन्त उदाहरण यहाँ पर यत्र-तत्र अवश्य दृष्टिगोचर हो रहे हैं। जैन प्रभाव के वे चिन्ह खासकर मूडी गेसोपे और भटकन यदि यहाँ के प्रमुख स्थानों के शासनांकित पद्यों में विशदरूप से उपलब्ध होते है । शासन' में जिस गेरुसोप्पे की भूरि-भूरि प्रशंसा की गयी है, उस गेरुसोप्पे का भग्नावशेष इस समय एक भयंकर जंगल के गर्भ में छिपा हुआ है । यहाँ पर आज भी भग्नावशिष्ट कलापूर्ण कई भव्य जिन भवन मौजूद हैं। ये मंदिर नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, वर्धमान एवं चतुर्मुख के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन मनोज्ञ मंदिरों में चतुर्मुख तो सर्वथा दर्शनीय है । स्थान भी बड़ा शान्त तथा सुन्दर है। पार्श्वनाथ जिनालय में विद्यमान पद्मावती एवं अम्बिका की मूर्तियाँ और नेमिनाथ मन्दिर में वर्तमान नेमिनाथ की प्रतिमा कला की दृष्टि से बहुत सुन्दर हैं। एक जमाने में जो गेरुसोप्पे जैन रानी चेन्न भैरा देवी की वैभवशाली राजधानी थी वहाँ पर
१ - " इंतेसव नगरिराज्यद मध्यप्रदेशदोळ् बलसिर्दोप्पुव नंदनावलिग िकासारनीरेजदि । कलधौतोज्ज्वल साल कोतलगळिंदहाल जालंगळि । विलसद्गोपुरदिं सुहर्म्यचनदि श्रीजैनगेहगतिं । चेलुवं वाल्दिद गोरुसोप्पे नगरं कोंडा डबा हरे ।”