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भास्कर
[भाग १७
प्रकार के सर्वप्रमुख देवता है। प्रथम ईस्वी सदी की लिपि में अंकित लेख के साथ एक शिलालेख का टुकड़ा मथुरा में मिला है जिनमें एक नीचे आसन पर मेष के मस्तक वाले नायगामेष पालथी मार कर बैठे हैं। इनका मुख ठीक सामने की ओर है मानों किसी व्यक्ति को उपदेश दे रहे हों, जिनकी मूर्ति नष्ट हो गयी है। लेग्व में देवता का नाम 'भगवत नेमेषो दिया गया है। प्रस्तुत लेम्ब के 'नेमेषो' कल्पसूत्र के हरिणेगमेपो, नेमिनाथ चरित्र के नायगमे पिन तथा अन्य ग्रन्थों के नेजमेष या नैगमेय नामक देवताओं के नामों का रूपान्तर हैं, जिनका स्वरूप जैन धार्मिक कलाओं में भेंड़, बकरा या हिरन के मस्तक से युक्त बतलाया गया है। मथुरा के पालोच्य शिलालेख में उनका सिर बकरे का है। कनियम ने भी चार नायगामेष की मूर्तियाँ खोज निकाली थीं। नहीं पहचानने के कारण उन्होंने इन्हें केवल बैल के सिर वाले देवता कहकर वर्णन किया है।
पूर्वकथित मथुरा को नायगामेप की मर्ति के दाहिनी ओर तीन खड़ी हुई महिलाओं और एक बजे का चित्र है। बुहलर के विचारानुसार यह चित्र श्वेताम्बरागम में वार्णित संभवतः उस कथा को प्रस्तुन करता है जिसमें देवनन्दा और त्रिशला के बीच गर्भ के परिवर्तन का वर्णन है। __जैन पुराणों के अनुसार नायगामेपिन गर्भ धारण के देवता भी माने गये हैं।
अन्तःकृत दशांग में एक प्रसंग है जिसके अनुसार सुलसा ने नायगामेषिन को प्रसन्न कर उनकी कृपा से गर्भधारण किया था। प्राचीन काल में जैन नायगामेषिन् को स्त्री और पुरुप दोनों रूपों में चित्रित करते थे। कर्जन म्यूजियम मथग की २५५७
और E. I. नम्बर की शिलाओं पर इस देवता का पुरुष रूप मिला है और उसी म्यूजियम की E 2 नम्बर की शिला पर उन्हें बकरे के मस्तक वाली देवी के रूप में चित्रित किया गया है।
जैन उपासना गृहों में सरस्वती, गणेश इत्यादि कुछ ऐसे देवों की मूर्तियाँ भी मिलती हैं, जिनकी हिन्द-उपासना-गृहों में प्रधानता रहती है। कंकाली टीले से मस्तक-रहित दो नारी-मूर्तियाँ मिली हैं। एक तो पहचानी नहीं जा सकी परन्तु दूसरी सरस्वती की है। वह देवी एक चौकोर आसन पर घुटनों को ऊपर किये बैठी है। उसके बायें हाथ में एक पुस्तक है और दायाँ हाथ, जो उठा हुआ था, नष्ट हो गया है। श्रासन से लेख में इन्डोसीथियन लिपि की सात पंक्तियाँ हैं।
तीर्थकरों तथा जैन-मत के अन्य देवों के अतिरिक्त मथुरा के कंकाली टीले पर कुछ छिटपुट ऐसे चिह्न और चित्र भी मिले हैं जिन्हें जैन पवित्र मानते हैं जैसे स्वस्तिक,